30 NOV 2018 AT 19:29

ये धूप किनारा शाम ढले
मिलते हैं दोनों वक़्त जहाँ
जो रात न दिन जो आज न कल
पल-भर को अमर पल भर में धुआँ

इस धूप किनारे पल-दो-पल
होंठों की लपक, बाँहों की छनक
ये मेल हमारा झूठ न सच

क्यूँ रार करो क्यूँ दोष धरो
किस कारन झूठ बात करो

जब तेरी समुंदर आँखों में
इस शाम का सूरज डूबेगा
सुख सोएँगे घर दर वाले
और राही अपनी रह लेगा

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