Ravi Prakash  
11 Followers · 14 Following

Joined 3 November 2018


Joined 3 November 2018
23 JUN 2022 AT 19:10

उत्तराखंड 2016
अरुणाचल प्रदेश 2016
गोवा 2017
दिल्ली 2017 (असफल प्रयास)
मणिपुर 2017
कर्नाटक 2019
मध्यप्रदेश 2020
पश्चिम बंगाल 2020 (असफल प्रयास)
राजस्थान 2020 (असफल प्रयास)
महाराष्ट्र 2022 (तीसरा प्रयास, पिक्चर अभी बाकी है)

-


23 MAY 2022 AT 22:03

वादों का निभाना बाकी है
और उनको मनाना बाकी है
अपना भी समझाना बाकी है
उनका भी समझना बाकी है
सबको पता है हम उनके हैं
बस उनको बताना बाकी है
फूल कमल के खिल तो गए
बस मुस्कराना अभी बाकी है
बातें तो हजारों तुमने कहीं
पर अभी दिल में उतरना बाकी है

-


17 FEB 2022 AT 9:18

जब किसी से कोई गिला रखना
सामने अपने आईना रखना

मस्जिदें हैं नमाज़ियों के लिये
अपने घर में कहीं ख़ुदा रखना— % &

-


1 FEB 2022 AT 15:30

सत्यमेव जयते!

बिन लड़े हार जाना हमारी रीत नहीं।
सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं।।— % &

-


28 JAN 2022 AT 22:12

चाँद से फूल से या मेरी ज़बाँ से सुनिये
हर तरफ आपका क़िस्सा हैं जहाँ से सुनिये

सबको आता नहीं दुनिया को सजा कर जीना
ज़िन्दगी क्या है मुहब्बत की ज़बाँ से सुनिये

मेरी आवाज़ ही पर्दा है मेरे चेहरे का
मैं हूँ ख़ामोश जहाँ, मुझको वहाँ से सुनिये

क्या ज़रूरी है के हर पर्दा उठाया जाए
मेरे हालात भी अपने ही मकाँ(न) से सुनिये— % &

-


26 JAN 2022 AT 13:27

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

अखिल भारतीय परिवार पार्टी
— % &

-


25 JAN 2022 AT 11:25

अब के सावन में ये शरारत मेरे साथ हुई,
मेरा घर छोड़ के सारे शहर में बरसात हुई

आप मत पूछिए क्या हम पे सफ़र में गुजरी?
था लुटेरों का जहाँ गाँव वहीं रात हुई

ज़िंदगी-भर तो हुई गुफ़्तगू गैरों से मगर,
आज तक हमसे न हमारी मुलाक़ात हुई

हर गलत मोड़ पे टोका है किसी ने मुझको,
एक आवाज़ जब से तेरी मेरे साथ हुई

मैंने सोचा कि मेरे देश की हालत क्या है?
एक कातिल से तभी मेरी मुलाक़ात हुई— % &

-


15 JAN 2022 AT 9:48


झूठी सच्ची आस पे जीना, कब तक आख़िर, आख़िर कब तक
मय की जगह ख़ूने-दिल पीना, कब तक आख़िर, आख़िर कब तक

सोचा है अब पार उतरेंगे या टकरा कर डूब मरेंगे
तूफ़ानों की ज़द पे सफ़ीना, कब तक आख़िर, आख़िर कब तक

एक महीने के वादे पर साल गुज़ारा फिर भी ना आये
वादे का ये एक महीना, कब तक आख़िर, आख़िर कब तक

सामने दुनिया भर के ग़म हैं और इधर इक तन्हा हम हैं
सैकड़ों पत्थर, इक आईना, कब तक आख़िर, आख़िर कब तक

-


13 JAN 2022 AT 16:39

ना हमसफ़र ना किसी हमनशीँ से निकलेगा
हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा

मैं जानता था कि ज़हरीला साँप बन बन कर
तेरा ख़ुलूस मेरी आस्तीं से निकलेगा

इसी गली में वो भूखा फ़क़ीर रहता था
तलाश कीजे ख़ज़ाना यहीं से निकलेगा

बुज़ुर्ग कहते थे इक वक़्त आएगा जिस दिन
जहाँ पे डूबेगा सूरज वहीं से निकलेगा

बीते सालों के ज़ख़्मो हरे-भरे रहना
जुलूस अब के बरस भी यहीं से निकलेगा

-


4 DEC 2021 AT 18:53

याद रख सिकंदर के हौसले तो आली* थे 
जब गया था दुनिया से दोनों हाथ खाली थे 
*Great

कल जो तनके चलते थे अपनी शानों शौकत पर 
शमा तक नही जलती आज उनकी तुर्बत* पर 
*क़ब्र

-


Fetching Ravi Prakash Quotes