गर लिखी मैंने कहानी मेरी
ना बनूँगा राजा न होगी रानी मेरी,
मेरे काम बड़े पर इक छोटा सा प्यादा मै
मेरा कोई नाम नही हुआ गुमनाम मै।-
हुई मुझे शिकायत खुदा से
जब उसकी दुआ कबूल ना हुई
मै हूँ कई बार बचा हादसे मे
जबकि ना किया तुम्हे याद
ना हादसे से पहले ना हादसे के बाद-
दिखूँ तो मै खफा दिखूँ
माँगू तो मै वफा मांगू
ये लिखूँ तो मै कितनी दफा लिखूँ-
अपने जब भी मिले, मैने उन्हे सिर्फ चाय दी
नमकीन बिस्किट बिना।
और जब उन्होंने टोका,
उनकी नमकीन सी बाते
बिस्किट सी मीठी लगी
क्या यही अपनापन है ?-
जीना है तो मर जायेगा,
मर गया सो जी लिया।
क्या मरना क्या जीना
सब मोह है
सब माया है
ना मोह का कभी अंत हुआ,
ना माया का कभी जाल खुला
मोह से कर्म हुआ, माया मे उसका फल मिला
कर्मवीर वही केहलाया जिसको मोक्ष मिला
मोक्ष उसे मिला जो इन सबसे विरक्त हुआ-
कुछ कागज़ी डिग्री, कुछ नये चार पैसे कमा बैठे है।
ये तो वो बात है माथे पे लाल टीका,
मुह मे बनारसी पान दबा बैठे है
हमारी राह है जमीं पर और वो आसमां मे उड़ान लगा बैठे है
वो उड़ा बैठे अनपढ़ का मज़ाक
बाबू भूल कर बैठे क्योंकि ,
वो अपने पूर्खो की बनाई डोर
पतंग मे लगा उड़ान लगा बैठे है
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