RAVI KUMAR   (Rवि)
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Joined 20 July 2018


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8 JAN 2023 AT 10:38

मेरी कब ख्वाईश रही कि खूब बातें हो
तेरी आवाज मुझे सूकून देती है इतना काफी नहीं।

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25 NOV 2022 AT 23:24

A motivated man is strong but
A disciplined man is deadly .

And here ....I am motivating
myself To be desciplined.😃

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6 JUN 2022 AT 18:06

पूछते है लोग कि क्या कर रहे हो आजकल
पढ़ रहे हो !पढ़ते रहोगे या होगे भी कभी सफल।

कभी हँसकर कभी सहकर टालता हर बात को
कबतक छिड़े द्वंद से बचाऊँ अपने आप को।

पापा के दिये खर्चे का हर महीने हिसाब दो
मजबूरी ,भावनाऐं समझो उनकी और फिर जज्बात को।

क्या बताएं किसको-किसको कैसे क्या -क्या हो रहा
कैसे आँखे मूँद कर सिस्टम सारा सो रहा
कानों के पट भी बँद कर लिए - व इधर हर वर्ग रो रहा।

नेताओं ने सब पक्की कर ली कमाई भी बड़ी अच्छी कर ली
जब बारी आयी आम जन की युवाओं कि रोजगार सृजन की
लूट-खसोट घर भर लिया खुद का फिर 'विकास' से कट्टी कर ली।

पूछे जब परिवार सारा कब तक होगा जाॅब तुम्हारा
बातें सुनकर मन मसोसकर बैठ जाता थका-हारा
सोचता कि क्या बताऊँ कब तक रवि बहाने बनाऊँ
अगली बार कह-कह कर कितने भावी दिलासे दिलाऊँ।

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16 APR 2022 AT 22:27

वो बुरी है क्योंकि वो शरमाती नहीं
सकुचाती नहीं
गलत को गलत कहनें में
अपने हद में न रहनें में
वो बुरी है क्योंकि वो सोचती नहीं दुनिया के बारें में
वो डूबती नहीं बेमतलब के ख्वाब और चाँद तारें में
वो बुरी है क्योंकि वो फर्क नहीं करती अपने
हमारे और तुम्हारें में
वो बुरी है क्योकिं वो विचारती नहीं
सबको संभालने में खुद को सँवारती नहीं
बुरी है क्योंकि गुस्से को दबा
कर रखती है गमों को तन्हा ही
सजा कर रखती है
वो बुरी है क्योंकि औरो पर कुछ थोपती नहीं
उसका सवाल चुभता है सबको
इसलिए वो कुछ पूछती नहीं
वो बुरी है क्योंकि वो अकेले रहना पसंद करती है
किसको क्या पता वो खुश रहने को कितना जतन करती है
वो बुरी है क्योंकि उसको कोई शर्म नहीं
सहीं सवाल पूछना भी उसका धर्म नहीं
वो बुरी है क्योंकि वो चुपचाप रहती है
बच्चों के नखरे से लेकर अपनों के तानें सब सहती है
जब खुद से परेशान होकर हालात से तंग आकर
मन बहलाने को अपनों से बात कर ले तो
बात फैलाती है घर का रहस्य बाहर बताती है।
वो बुरी हो क्योंकि हर अंकुश को चुपचाप झेलती है
ऊब कर कभी कुछ सही भी बोले तो बहुत बोलती है
वो बुरी है क्योकिं उसने सबकुछ स्वीकार कर लिया है
आदत पड़ चुकी है उसको ऐसे जीने की
इसे ही अंगीकार कर लिया है।




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3 APR 2022 AT 21:43

यूँ रोज रोज मिलेगें तो शक होगा
कुछ हो या न हो पर इश्क़ बेशक होगा।

समझाईश की गुँजाइश नहीं बची जरा भी
जब शुरू हुआ है तो अंत तक होगा।

देखते है कितनी ऊँगलियाँ उठती है
इन कुलीनों की बस्ती से मेरी ओर
अब मेरी भी नजरें हर तरफ होगा।

शरीफों,विनीतों,अक्लमंदो का कभी तो
हटेगा नकाब झूठेपन का आखिर
कब तक सिर्फ सच ही गलत होगा।

हर वक्त आजमाने की प्रवृति नहीं हमारी
अब जो भी होगा जब -सही वक्त होगा।











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3 APR 2022 AT 20:39

उठो जागो कुछ अक्षर पढ़ो कलम उठाऽ न निरक्षर रहो
हर घर-द्वार उजियार होगा जब शिक्षा पर अधिकार होगा।

जाति रंग रूप वेश-भूषा का शिक्षा है गुलाम नहीं
पिछड़ा दलित हो या कोई भी रंग सबका है गुमान यहीं।

ऊँच,नीच,शुद्र,गँवार में समाज ने सबको बाँट दिया
रूढ़िवादी सोच पर रखकर जाति के हँसिए से काट दिया

यादव,पंडित,महार बनाकर काम का बोझ भी लाद दिया
खुली आँखो से दिखे है सबकुछ फिर भी नजर अंदाज किया।

बदलते लोग बदलता जमाना फिर क्यूँ न बदले सोच कोई
अजीब दानिशमंदों को देखकर मानवता भी फूट फूट रोई।


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3 APR 2022 AT 10:20

नियत परखने की काबिलियत मत देना मेरे आका
मुझसे मेरे अपने ठुकराये नहीं जाते

दर्द कितना है खुद ही छिपाऐ रखता हूँ
तुम सुन तो पाते हो 'पर' हमसे सुनाए नहीं जाते।

बोली लगी जब खुशियों की बाजार में
छोटे-बड़े ,नवाब,रईश एक से एक खरीदार थे
हम यूँ ही गुमसुम बैठे रहे क्योकीं
मुझसे मेरे गम बिसराए नहीं जातें।

गुनाह भी क्या है इन भावनाओं का
बस एक याद ही तो है फर्ज अदाओं का
सुना है मेरे लोग, मेरे अपने खबर पूछते है मेरी
बताओ उन्हें कि सताए हुए लोग फिर से सताए नहीं जाते।








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2 APR 2022 AT 19:42

सुर्ख निगाहें उसकी कहर ढाती है
जब वो नजरें झुका कर मुस्काती है
तो समझो कयामत लाती है।

आज कल की तितलियां चंद उड़ानों पे इतराती है
वो तो पुरे आसमाँ व फिजाओं पे छाती है।

और शक करने लगे है लोग हमारी दोस्ती पर
क्या कह दूँ उन्हें कि तु मेरी जीवन साथी है।

मैं खुद उसके हवाले हूँ क्या कहूँ
मैं वही बताता हूँ जो वो मुझे बताती है।

कहती है कि तुम बहुत भोले हो तुम्हें कुछ पता नहीं
फिर खुद ही प्रेम नगर का सच बता देती है।

वह अलग है सबसे उसका तरीका भी
लोग हँसा कर रूलाते है वो हँसा-हँसा कर रूलाती है।

गर कभी रूठ भी जाऊँ तो वो मनाती नहीं
मनाने के लिए मुझे खुद भी रूठ जाती है ।





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2 APR 2022 AT 3:54

मैं खुद को समझाता हूँ तेरे जाने के बाद
रूसवा न हो तनिक बात से- उसकी तो
फितरत है तोड़ने की दिल लगाने बाद।

जिसे पलको पर बिठा कर पूरा शहर घुमता था
उस रास्ते भी न जाता उसके जाने के बाद।

जख्म देकर मेरा मरहम ले गई वो
अब तो दर्द भी न कमता सहलाने के बाद।

अहले दुनिया को क्या बताऊँ कि क्या-क्या हुआ
कैसे निकाले अगूँठी उसने पहनाने के बाद।

भूल गया होगा उसे-मुझे अब तलक इब्त़िला है
जो मैं खुद समझ गया था उसे समझाने के बाद।

कि लब पे उसका नाम न आए इसका दावा नहीं
अक्सर सच छलकता है दिल भर आने के बाद।

और सब पूछते है कारण मेरे मायूसीपन का
दरख्तों से फूल नहीं झरते पतियाँ गिर जाने के बाद।

भूलकर कायदे से निठुर होकर चैन से सोती है वो
एक मैं हूँ जो अरसों से सोया नहीं घर आने के बाद।

खैर जो भी हो जैसा भी हो एक जिंदगी है उसपे वार दी
अब फरक् भी नहीं पड़ेगा रूह निकल जाने के बाद।

पता चला है कि ख़बर लेती है वो सखियों से
क्या मज़ा आता है उसे-मुझे तड़पाने के बाद।

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1 APR 2022 AT 23:57

मजहब ने लोगों के दिमाग में इस तरह घर कर लिया है
इंसान को हिंदु-मुसलमान बना कर कुछ को
उधर कुछ को इधर कर लिया है

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