कुछ दोस्ती बहुत ख़ास होती हैं
जीवन का यथार्थ होती हैं।
मोहब्बत का तो पता नहीं पर
दोस्ती की एक अलग पहचान होती हैं।-
" विरह गीत "
लिख रहा हूँ विरह गीत
रिमझिम रिमझिम बरसात मे।
बीत रहा है दिन मेरा
रो रो कर अंधेरी रात मे। शिद्दत-ए-मोहब्बत को ठुकराया उसने छोटी-छोटी बात मे। बीच मझधार मे छोङ गई वो
बेरूखी और संगीन हालात मे।
अकारण मुझे छोड़ गयी वह किसी स्वार्थी की बात मे।
लिख रहा हूँ विरह गीत रिमझिम रिमझिम बरसात मे।-
" इंसानियत होती शर्मसार "
निर्भया, असीफा, गीता, दिव्या
सिर्फ नाम बदल जाते हैं।
आय दिन इंसानियत को
बेरहमी से शर्मसार किये जाते हैं।
कठुआ, मंदसौर, उन्नाव
बस स्थान बदल जाते हैं।
बेटियों के इज्जत के साथ
रोज खेलबार किये जाते हैं।
मंदिर, मस्जिद, बीच सङक पर
दरिंदागी से बलात्कार किये जाते हैं।
कब जागेगे वजीर- ए-आजम
यही प्रश्न मन में आता है ?
तङपा तङपा कर उन पापियों को
क्यो नहीं जलाया जाता है ?-
टपक रहे थे पानी किसी के झोपड़ी में
किसी ने भीग कर रात बिताया हैं।
लगता है किसी बेवफा के गम में
आज बादल ने घंटो आँसू बहाया हैं ।-
"मेरे पापा "
कभी धूप, कभी छाँह में
मैने आपका साथ पाया।
बनकर एक सच्चा मित्र
मेरे व्यक्तित्व में निखार लाया ।
कभी लोहे से कठोर बनकर
आपने मुझे अनुशासन सिखाया।
जीवन के कठिन राहो में
आपने मेराआत्मविश्वास बढाया।
बिना कुछ माँगे ही मैने
हमेशा सब कुछ पाया।
पढा-लिखा कर आपने मुझे
एक सच्चा, आदर्श इंसान बनाया।
-रवि कुमार साव
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"बारिश की बूंद"
देख गगन मे आज
श्याम घन घटा छाया है।
लगता है अब सुनहरा
बरसात का मौसम आया है।
बारिश के छोटे बुंदे ने
धरती की प्यास बुझाया है।
लगता है आज तप्ती गर्मी से
लोगो ने राहत पाया है।
क्षितिज की गहराई ने
मधुर मिलन का अवकाश पाया है । बारिश के शीतल बूंदे ने।
मुझे अपनी नायिका से मिलाया है।
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" मेरी माँ "
जब खोलू आँखे तो
तेरा ही अश्क पाऊ।
इस बहुमुल्य जीवन का
माँ कैसे कर्ज चुकाऊ।
शब्दों के माया जाल में
तेरी शख्सियत क्या बताऊ?
तुझमें ही चारो धाम हैं
ये बात कैसे भूल जाऊ।
कोई करता है वफा
किसी ने की वेवफाई ।
पर माँ के चरणों में
रवि ने हर खुशियाँ हैं पाई।
जग में हो गया अँधियारा
तुने ही उज्जवल दीप जलाई।
कुछ कटु तीखी वाणी कहकर
मुझे तुने सही राह दिखाई।-
" मैं और मेरी मोहब्बत "
मोह माया के जाल में फंसकर
हमने आँखों में समंदर बसाया हैं।
बैशाख के कङके धूप में
उसके अश्क को रेत में बनाया हैं।
कब रू बरू होगी वो मेरे प्यार से
हमेशा हमने यही प्रश्न दोहराया हैं।
हिमगिरी के ऊँचे शिखरो पर
उसके खोने का डर मन में आया है ।
विरह विरह सा भटक रहा हूँ मैं
दिल ने कैसा दर्द भरा रोग लगाया हैं?
मुसाफिर बनकर उस गुलाब ने
तनहाई में मुझे बहुत तड़पाया हैं।
अलबेले दुख विषाद के मेले ने
रवि के खुशियों को बहुत जलाया हैं।
वृक्ष के सघन ठंडी छाह में
मैने स्वयं को अकेला पाया हैं।
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छोटी सी नाजुक कली है वो
आज फूलों का श्रृंगार करेगी ।
छोड़ के अपनी मायका
नये रिश्ते की शुरुआत करेगी ।
थाम के उनके हाथों को
वधू धर्म स्वीकार करेगी।
जीतकर सबके कोमल मन को
अपने कर्तव्य का निर्वाह करेगी।
चंचल, मृदुभाषिणी गुण हैं उनका
सबके दिल पर राज करेगी।
छोटी सी नाजुक कली हैं वो
आज फूलों का श्रृंगार करेगी।
---RAVI KUMAR SHAW
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" सुन रे पाखी "
सुन रे पाखी रैन बसेरा
जो घर तेरा वो घर मेरा ।
पग पग पर नाम है तेरा
बिन तेरे हैं जीवन अंधेरा ।
सुन रे पाखी रैन बसेरा
रवि के साथ ले ले सात फेरा।
तू ही संध्या, तू ही सबेरा
शीतल, मृदुभाषी मन है मेरा।
सुन रे पाखी रैन बसेरा
नैना में तेरे छवि हैं मेरा ।
तू बाती, मैं दीप हूँ तेरा
मिटा देंगे घनघोर अंधेरा।
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