लिखते हैं, मिटाते हैं
हर हर्फ़ तुझमें सजाते हैं
ज़ुबां से कह नहीं सकते जो
उसे काग़ज़ पे जताते हैं
रूठ के तेरी ख़ामोशी से अक्सर
खुद की आवाज़ से मनाते हैं
राहते इश्क़ में बैठकर हम
इस तरह दिल को सताते हैं
सबसे अज़ीज़ दोस्त से
तुझे ही अज़ीज़ बताते हैं
धुआँ सा रहता है घर में मेरे
इश्क़ में खुद को ऐसे जलाते हैं
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