Ravi Kumar   (Omkar(ravi))
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Joined 27 January 2020


Joined 27 January 2020
3 JUN 2021 AT 23:04

कुछ पल के लिए
ये वक़्त रुका था
तेरे बदन ने,मेरी..
रूह को छुआ था
ऊंचा सा गगन,मेरी..
बाहों में झुका था
यही वो पल था जब..
प्यार मुझे हुआ था
कुछ पल के लिए सही..
हाँ ये वक़्त रुका था

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2 JUN 2021 AT 0:13

ऐ कलम
तेरे नखरे बहोत हैं

सच के लफ्ज़ तो है पास
पर झूठे अल्फाज़ बहोत हैं

तू आज़ाद हैं इस देश में
पर पैरों में बेड़ियाँ बहोत हैं

सच्चाई कम बयां करती है
क्यों कि कहानियां बहोत है

काग़ज़ पर इतनी लकीरें न खिंची
फिर भी देशों में सरहदें बहोत हैं

चीखती आवाजें ना पहुंची
वहां तेरी ख़ामोशी बहोत है

किसी के दिल में घर बनाने की
तेरी एक छोटी सी ईंट बहोत है






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13 AUG 2020 AT 22:31

साहिल पे खड़े होकर अक्सर
लहरों को निहारा करते हैं

उमड़ते हैं सैलाब मेरे अंदर
तुझमें डूब जाने का इशारा करते हैं

माहिर हैं अपने फ़न में मेरी पैदाइश से
वो जज़्बात सिर्फ़ तुम्हारा करते हैं


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13 AUG 2020 AT 22:16

सबकी अपनी दुनिया है
कोई उसे प्यार से सजाता है
कोई खुद ही आग लगाता है

सबकी अपनी दुनिया है
कोई घुट घुट के इसे पी लेता है
कोई हरपल खुशी से जी लेता है

सबकी अपनी दुनिया है
कोई सपने बुन हक़ीक़त पा लेता है
कोई हक़ीक़त में ख्वाब जगा लेता है

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30 MAY 2020 AT 22:04

सारा रंग बिखर जाता है
जब तू संवर जाता है
निगाहें जब देख लें तेरी
मेरा हर ऐब सुधर जाता है
साहिल पे बैठ जाऊँ तो
दरिया में अक्स उभर जाता है
ताज़गी कम है चेहरे पे मेरे
तेरे साथ ये निखर जाता है

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18 MAY 2020 AT 19:50

लिखते हैं, मिटाते हैं
हर हर्फ़ तुझमें सजाते हैं

ज़ुबां से कह नहीं सकते जो
उसे काग़ज़ पे जताते हैं

रूठ के तेरी ख़ामोशी से अक्सर
खुद की आवाज़ से मनाते हैं

राहते इश्क़ में बैठकर हम
इस तरह दिल को सताते हैं

सबसे अज़ीज़ दोस्त से
तुझे ही अज़ीज़ बताते हैं

धुआँ सा रहता है घर में मेरे
इश्क़ में खुद को ऐसे जलाते हैं


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16 MAY 2020 AT 18:11

शायद यही मंज़ूर था
तड़पना ही ज़रूर था

जुदाई तो ईनाम लगी
मिलना ही कसूर था

गोद में सोने से पहले
मरना ही ज़रूर था

रोते रहे उनके लिए हम
हंसी ही जिनका गुरूर था

कोई पसंद न आया फिर
उस अदा का ही सुरूर था

हम मोहब्बत समझ बैठे
मेरे दिल का ही फितूर था

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14 MAY 2020 AT 17:27

इस तरह तो
क़यामत भी है इनायत भी
रुख से जो पर्दा हटा दो

इस तरह तो
शरारत भी है अदावत भी
ज़ुल्फ़े जो बिखरा दो

इस तरह तो
शराफ़त भी है सदाक़त भी
मेरा घर जो महका दो

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12 MAY 2020 AT 19:37

कमीं कहाँ रह जाती है
दुनिया बनाने वाले को
खुद नहीं पता

नमीं कहाँ रह जाती है
खुशियां देने वाले को
खुद नहीं पता

ज़मीं कहाँ रह जाती है
आसमां देने वाले को
खुद नहीं पता

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12 MAY 2020 AT 19:20

सब कुछ कहाँ कह पाते हैं
कितने अल्फाज़ रह जाते हैं

किसी की बेबसी खामोश
होकर दम तोड़ देती है
किसी की बेबसी ज़ुबान से
कह के भी ज़िंदा रह जाती है

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