Ravi Kumar   (Kr_Ravi)
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मैं तपती रेगिस्तान में बारिश के इन्तेजार मे हूं।
Joined 18 May 2019


मैं तपती रेगिस्तान में बारिश के इन्तेजार मे हूं।
Joined 18 May 2019
17 APR AT 0:30

गिरता है गुलमोहर ख्वाबों में
रात भर,
ऐसे खव्बों से बहार निकलना
ज़रूरी है क्या।।

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28 JAN AT 0:33

सिवाय अनंत के
दो समानांतर रेखाएं
कहीं नहीं मिल सकतीं-
ये प्राकृतिक है।

वो दोनों काफी दृढ़निश्चयी होंगे
जो मिलेंगे
प्रेम को अनंत करके-
किसी गाँव के
छोटे से घर में-
जैसे शून्य में पनपा है
अनंत ब्रह्मांड।

समांतर रेखाएं अनंत पर जरूर मिलती हैं
ये बात प्राकृतिक भी है और सच भी
अब मैं ये जानता हुँ।

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26 JAN AT 1:10

आई लव यू लिखना
कभी उतना लव नहीं
समझा पाएगा
जितना लव करता है
एक दिल दूजे से

आई मिस कहना भी
कभी उतना मिस करना नहीं
समझा सकता
जितना मिस करता है
एक मन दूजे को

प्रेम में पत्र,चित्र,
गुलाब, सुर्खाब
बातें, मुलाकातें,
दिल बहलाने के ख्यालभर हैं,
सच्चा प्रेम मौन अभिव्यक्ति पर रीझकर,
सब्र की आंच पर सीझता है।

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26 JAN AT 0:54

वक्ष पर तेरे जब सर रख लेता,
पीड़ा मन की सब हर लेती हो।
देते हो तुम प्रेम निमंऋ्रण,
या हृदय खोल रख देती हो।

तेरी अल्हड़ मुस्कानों पर,
जब शब्द समर्पण कर देता हूँ,
तेरी आंखों के मैखानों पर,
सारे ख्वाब समर्पित कर देता हूँ।

माथे की विचलित रेखा हो,
या हो मेरे चेहरे की चंचलता,
सब हंसकर तुम सह लेते हो,
देती हो तुम प्रेम निमंत्रण,
या हृदय खोल रख देती हो।

जीवन के कठिन सोपानों में,
विश्वास थमा तुम देती हो,
ग़म का सूरज हो, या हो धूप दुःखों की
शीतल साथ तुम अपना दे देती हो।

मुझको अपने आलिंगन में अपनाकर,
जीवन सरल मेरा कर देती हो।
देते हो तुम प्रेम निमंत्रण,
या हृदय खोल अपना रख देते हो।

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20 DEC 2024 AT 17:52

मैं धर्म रच कर,
जीत लूँगा
सारे युद्ध,
जमीन, असमा, समुद्र,
और अंधी को,
तुम केवल
करुणा रचना,
और मुझे जीत लेना।

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20 DEC 2024 AT 16:56

उत्तराधिकारी हो तुम
मेरे प्रेम का

मेरा दायित्व है
अंतिम स्वास लेने से पहले
ह्दय का सम्पूर्ण प्रेम
तुम्हारे नाम कर देना

ताकि तुम्हें
अपने जीवन में
कभी प्रेम का आभाव ना हो।

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20 DEC 2024 AT 16:53

यक़ीन मानिए
प्रेम की प्रगाढ़ता में जो
सबसे जरूरी तत्व है
वो है समय।

समय वो गोंद है जो
असल प्रेम की प्रगाढ़ता को
न केवल बनाए रखता है
बल्कि
इस बंधन को
और मजबूत कर देता है।

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20 DEC 2024 AT 16:41

सुर्ख हो चला है,
गिले लबों पर भीग कर, तुम्हारा प्रेम।
गिले इन सुर्खियों को,
रोज और गहरा रहा है वक्त।

कभी जो शुष्क हुए तुम्हारे लब,
तो उन सुखी पपड़ियों को खरोंच कर,
विरह वेदना में तुम्हारे हृदय की परतों को,
मैं आहत नहीं करना चाहता।

मैं तो केवल उन शुष्क लबों को,
लबों के स्पर्श से नम,
और अपने धमनियों के गीत से,
रक्तिम कर देना चाहता हूँ,

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19 DEC 2024 AT 20:14

तुम्हारा संगीत में मैं
तुम्हारी आवाज की मधुरता नहीं तलाशता।
मैं तो बस, उन संगीतो में उभर रही,
तुम्हारी आत्मा की पवित्रता मे खो जाता हूँ।

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14 DEC 2024 AT 1:11

क्या नाम दु उसे,
उसकी नाम से पहचान देना,
अब ये भेद मेरे भीतर नहीं रहा,
मैं तो केवल एक ही नाम जनता हूँ,
"प्रेम"

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