Ravi Hudiya   (रवि हुंडिया 🕊️)
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Joined 5 July 2020


Joined 5 July 2020
31 JAN AT 12:18

हे शंभु तेरा आशीर्वाद दे-दे,
मुझे भी कुंभ का प्रसाद दे-दे।
मैं कल रहूं ना रहूं मर्जी हैं तेरी,
बस काशी में चिता की आग दे-दे।

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23 MAY 2024 AT 12:54

उस के अपने उसे नाशूर - ऐ - जख्म समझते हैं,
एक हम दीवाने हैं की उसे मरहम समझते हैं।

सारी दुनियां घूम कर थक जाओ तब लौट आना,
तुम्हें कोई नहीं समझेगा जैसे हम समझते है।

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3 MAY 2024 AT 18:44

मत पूछ मेरा हाल उस शाम के बाद,
कैसे बचा हुं उस बात के बाद।

कैसे बच गया कुछ मालुम नहीं मुझे,
मैं तो मार ही गया था उस घात के बाद।

क्यूं हों जाते हैं लोग पागल ये तेरे बाद जाना,
कुछ नहीं बचता यार इश्क में मात के बाद।

ख्वाहिश तो बहुत है तुमसे मिलने की मगर,
डर हैं कैसे सम्हालूगा खुद को मुलाकत के बाद।

तेरी एक आवाज़ मे सब सितम भूल गया,
तेरे सूरत ना देखूंगा सोचा था उस रात के बाद।

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27 APR 2024 AT 1:15

बहती नदियां पेड़ पहाड़ अच्छे लगते हैं,
बंद रहने दो ये बंद किवाड़ अच्छे लगते हैं।

बेछड़ोगे किसे अपने से तब जानोगे,
क्यूं मुझे जॉन और फरहाज अच्छे लगते हैं।

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25 APR 2024 AT 9:32

नींद नहीं आती हैं रात भर,
तेरी याद आती हैं रात भर।

मेरी रूह सिसकती हैं,
वो चैन से सोती है रात भर।

बदलता रहता हूं करवटें,
तू गैर आगोश में होती हैं रात भर।

एक ख्याल रुलाता है,
एक ही ख्याल आता है रात भर।

मैं कल नहीं सोया,
मैं कल फिर रोया रात भर।

रवि कल का रवि नहीं देखना,
बस यहीं ख्याल आया रात भर।

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24 APR 2024 AT 23:55

मुझ पर ये उपकार क्यूं नहीं कर देती, ये खंजर ज़िगर के पार क्यों नहीं कर देती।
कब तक दबा कर रखेंगी ये सैलाब आंखो में, छलका कर अश्क गमों की ईमारत तार-तार क्यों नहीं कर देती।

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24 APR 2024 AT 0:35

पूछते है।

क्या बाते करता था बड़ी बाते करता था ,
रात रात भर मूहाबत पर किताबे कहता था।

कोई शहजादी मिली या कोई नूर मिली हैं,
कहा है उस इशकजादे का क्या हुआ ।

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21 APR 2024 AT 22:59

मुहब्बत ही सितम हो गई,
आखें इस कदर नम हो गईं।
और।।।।
जॉन से थोड़ी नज़दीकी क्या हुईं
लोगों से उम्मीदें ही ख़त्म हों गईं।

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20 APR 2024 AT 12:43

ये समाज की वहशत किस मोड़ पर ले आई,
अ यार अब बिछड़ना पड़ेगा हमें।

तेरी समझदारी का कर्ज़ चुकाऊंगा मैं,
अकेले सफ़र करना पड़ेगा तुम्हें।

सब हो जायेगे दूर कस्ती डुबोकर,
भवर से लड़ना पड़ेगा हमें।

मैं नहीं चाहता की मेरा दर्द जाने ये लोग,
मगर शायर हूं अपना गम लिखना पड़ेगा मुझे।

इक नया रिश्ता गड़ देंगें ये,
हर खुशी से लड़ना पड़ेगा तुम्हें।

लगता हैं हर आशिक फरेबी दुनिया को,
महोबत की है तो मरना पड़ेगा तुम्हें।

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17 APR 2024 AT 23:22

कब तक हालातो से भागते रहेंगे,
कब तक यूं रातों को जागते रहेंगे।

कभी कभी सोचता हूं बदल दूं खुद को,
कब तक जलेगा दिल कब तक आग तापते रहेंगे।

तुम्हें आना है की नहीं ये सवाल रहेगा कब तक,
कब तक आंखे छलकेगी ये लब कपते रहेंगे।

दोस्त देने लगे हैं मशवरे जीने के,
कब तक हम यूं बात काटते रहेंगे।

कब आएगा कोई फरिश्ता उतरकर ऊपर से,
कब तक हम यूं आसमां को ताकते रहेंगे।

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