Ravi. Gupta   (रवि नादान)
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Joined 30 July 2018


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13 SEP AT 16:05

मेरी नज़र से अपना
चेहरा देख लो
देखनी है ख़ूबसूरती
आईना देख लो

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12 SEP AT 12:25

कहाँ हो तुम कि तुम से मिलने की चाहत हुई है
बेजान पड़े इस दिल में' नई कोई शरारत हुई है

मिलना रोज मुनासिब नहीं तो अपनी तस्वीर ही दे दो
इन आँखों को तुम को देखने की आदत हुई है

बाद मुद्दत के मेरी जान मुझ को मिली हो तुम
बाद मुद्दत के ख़ुदा की मुझ पे इनायत हुई है

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11 SEP AT 23:38

उन के दिल में उतरने का रस्ता देख लिया
हम ने रहने को मकान कोई सस्ता देख लिया

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11 SEP AT 12:58

उस की इस बात पे भुला दिया गुस्सा
छोड़ो यार जाने दो किस बात का गुस्सा

गुस्से में अपनी सूरत खास ही बुरी लगी
गुस्से में तुम को देखा तो अच्छा लगा गुस्सा

जिस गुस्से को तुम ने मेरे जायज़ नहीं कहा
गुजरी जो आप पर तो आ गया गुस्सा

इस गुस्से ने जाने कितने घर फूँक दिये
निर्दयी है ज़ालिम है बे-रहम है बड़ा गुस्सा

आओ" गुस्से में एक दूसरे से हार जाए हम
ऐसा न हो की जीत जाए तेरा मेरा गुस्सा

गुस्से में गुस्से से दोस्ती तोड़ ली मैंने
बहुत हाथ जोड़े पाँव पकड़ता रहा गुस्सा

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8 SEP AT 20:27

हम उन के बराबर खड़े हैं
जलने वाले जले पड़े हैं

उस ने हमारा नाम लिया है
सुन ने वालों के कान खड़े हैं

चुन लिया मैंने कम हसीन कोई
हसीनों के तो नखरें बड़े हैं

चल रही है कैसे मेरी दाल रोटी
अपनों की आँखों में छाले पड़े हैं

आज बटवारे का दिन है
आज सब एक सफ़ में खड़े हैं

वो ख़ेल मजहबी खेलें हैं' और
जन जन सब आपस में लड़े हैं

चुभने लगे आँखों में सब की' ज़रा
कामयाबी की सीढ़ी क्या चढ़े हैं

उन को पाप का डर नहीं है
उन के पास कई घड़े हैं

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4 SEP AT 21:53

इस नज़र से किसी को बहुत कम देखतें हैं
मगर जब देखतें हैं तो एकदम देखतें हैं

चाहत है वफ़ा है लिहाज़ है उस नज़र में
जिस नज़र से तुम को हम देखतें हैं

जैसे देखता है मोमिन ख़ुदा को अपने
उस नज़र से हम तुम को सनम देखतें हैं

लड़खड़ाते देख कर ज़माना नशे में जान न ले
कभी हम अपनी जबाँ कभी कदम देखतें हैं

पूरा न हो पायेगा इस जनम में प्यार मेरा
साथ तेरे हम अपने सातों जनम देखतें हैं

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3 SEP AT 20:45

नज़रें मिली' हम मिले' फ़िर हुआ क्या क्या न कुछ ख़बर
उन पर भी था सुरूर कोई हम भी शबाब पर

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2 SEP AT 21:37

नैन नशीले, होंठ रसीले चाल कटीली छूरी है
दिलों में बिजली गिराने की एहतिमाम पूरी है

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1 SEP AT 21:39

मुनासिब न हो मुलाक़ात अगर तसव्वुर ए यार ही काफ़ी है

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31 AUG AT 23:57

इश्क़ में उनकी मेरा दिल-ए-ज़ार है बहुत
मरहम-ए-उल्फ़त की हम को दरकार है बहुत

आँखों से कहती है जबाँ से कुछ नहीं कहती
दिल ए नादान कहता है उसे भी प्यार है बहुत

लिए सब्र बैठे हैं कि शब ए वस्ल भी आएगी
बे-करार हैं मग़र मुझ में इंतज़ार है बहुत

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