Ravi Bamniya  
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Joined 22 August 2020


Joined 22 August 2020
13 NOV 2021 AT 1:47

#आदिवासी_गौरव_दिवस

तेरे पैंतरे को तेरे दंगल को खूब समझते हैं
हम आदिवासी जंगल को खूब समझते हैं

ये ज्योतिष हमें ग्रहों की चाल मे मत उलझा
हम,सूरज,चांद,मंगल को खूब समझते हैं

ये बनावटी दाहड से हमे न डरा , न धमका
हम शेरों के साथ रहते हैं, शेर की भाषा खूब समझते हैं

उससे कहो मैदानी झडप की कहानियाँ न सुनाए
कंदराओं/दर्रे के लोग हैं गुरिल्ला युध्द को खूब समझते हैं

चुनौती के सामने समर्पण नहीं,हम प्रत्यंचाओ पर तीर धरते हैं
इतिहास बनाना और भूगोल कैसे बदलना हम खूब समझते हैं..!!

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1 OCT 2021 AT 0:36

राज़
वो दीवारें
वो बंद खिड़कियां
मूक गवाह थीं
उस राज़ की
उन सिसकियों की
उन खामोश चीखों की।

वो मुस्कुराहटें जो कभी आँखों में न झलकीं
पारखी की नज़र से भी बची रहीं
वो आंसू जो छलकने को तरसते रहे
सबकी नज़रों से बचते रहे
लम्बी बाज़ू में छिपे निशाँ
सबकी नज़रों से ओझल रहे।

आज आइना सामने आ गया
कई सवाल उठ गए
असत्य ने साथ छोड़ दिया
आज ज़ख्म बोल उठे
सत्य से सामना हो गया
कई राज़ खुल गए।

दिल ने आत्मा को दस्तक दी
दरवाज़ा खुला नज़र आया
कांपते हाथों ने हिम्मत कर ही ली
डगमगाते पैरों ने द्वार के बहार कदम रख ही दिया
सामने खुला, नीला अम्बर था
और सतरंगी इंद्रधनुष !

नीति पारती

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21 SEP 2021 AT 21:22

कुछ सनक होती हैं
जो जुबां विष घोती हैं
हर परिवार तोडती हैं
ज़मीन, मकान, बाटती हैं
अमृत में जहर घोलती हैं
पुरखो के भाईचारा को
चारा समझकर खाती है
क्या यह सनक कभी खत्म होगी
या यूँही चलती रहेगी ,कयामत तक..!!

🖋📚रवि

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21 JUN 2021 AT 15:06

जी !
हौले से जिंदगी
चश्मे की तरह रंगीन है

दबी सी खामोशीयां
राज गहरे और संगीन हैं

क्या कहे सूरत-ए-हाल जीवन का
कभी खट्टी,कभी मीठी, कभी नमकीन हैं..!!

-रवि बामनिया

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16 JUN 2021 AT 1:07

साहेब...
बहुत भीड़ हो गयी थी उस गली (दिल) में

वक्त पर नहीं निकलते तो भगदड़ मे मारे जाते..!!

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23 FEB 2021 AT 11:14

गिड़गिड़ाने का यहां कोई असर होता नही,

पेट भरकर गालियां दो, आह भरकर बद्दुआ।

- दुष्यंत कुमार

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21 FEB 2021 AT 17:35

अच्छाई पर बुराई की भी उतनी ही विजय होती देखी गई है जितनी की बुराई पर अच्छाई की। कभी-कभी तो बुराई की ही अधिक विजय होती दिखाई देती है।

~खुशवंत सिंह

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18 FEB 2021 AT 23:22


आज अच्छा दिन हैं मेरे पास.

सतपुड़ा के पर्वत उँचे नीचे

और उसके हरे भरे जंगल

हवाओ की हल्की हल्की लहरें

पतली सी गड्डो वाली पक्की सडक

पलाश के सुंदर लाल रंग के फूल

पहाड़ी गांवो की शामे लालिमा से घिरे हैं

इमली के फल ,साथ ही महुआ फूल..!

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31 DEC 2020 AT 18:46

जो जैसा हैं वैसा ही रहेगा

सिर्फ कैलंडर बदलेगा

नहीं बदलेंगे कभी

वार , महिना, त्यौहार ,परिवार
और अपने जिगरी यार..!!

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31 DEC 2020 AT 18:34


एक बहुत बडी सिख दे गया

कि मनुष्यों तुम प्रकृति के

अधीन हो ,मालिक नहीं हो...!
🙏
अलविदा 2020

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