सिसक के आह भरके मैंने कितने दिन बिताया है!
नहीं भरता है दिल का जख़्म जो उसने लगाया है!
मेरे क़ातिल पे इक इल्ज़ाम ये लगता रहेगा अब;
के उसने दिल में आके दिल का चराग़ाँ बुझाया है!
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बातें बिल्कुल अच्छी-प्यारी रखता था।
लेकिन दिल में छल-मक्कारी रखता था।
मैंने उसका साथ निभाना छोड़ दिया;
मुझसे वो मतलब की यारी रखता था।
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होकर पूरी तरह बर्बाद, अच्छा लगा।
आज बड़े दिनों के बाद, अच्छा लगा।
चली उल्टी बयार कि इक अरसे के बाद;
किसी को आयी मेरी याद, अच्छा लगा।
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तुझसे गुफ़्तगू नहीं होती, अलग बात है लेकिन;
ये न समझ कि मुझको तेरी फ़िकर नहीं होती।
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अगर ख़ुद को बहा देता ज़माने की हवा में तो;
ख़ुशी के चार पल जीने के मौके हाथ ना आते।
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उसने तो अरसा पहले मुख मोड़ लिया था मुझसे;
फिर कल रात मेरे ख़्वाबों में आया था किसलिए?-
दिल से जाना कभी दिल में आना जानां।
कबतक छोड़ोगे मुझको सताना जानां।
तुम्हारे बग़ैर एक पल जैसे वर्षों की बातें;
ऐसे कैसे मैं जीऊँगा तुम बताना जानां।
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ख़्वाब सब टूटे हुए हैं नींद फिर भी आ रही है।
कुछ नहीं सुनने की चाहत पर हवा कुछ गा रही है।
पास मेरे है नहीं कुछ मेरी नाकामी में लेकिन;
इक नयी उम्मीद लेकर ज़िंदगी मुस्का रही है।
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अपराध के बादल बरसते, भीग जाता आदमी।
इस सभ्यता के दौर में ख़ूँ से नहाता आदमी।
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