Ravi Adhikari  
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Joined 17 May 2019


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4 APR 2022 AT 0:00

ख़ामोश हूँ ज़ज़्बात दबाएं बैठा हूँ, फिर वो ही आग आज घर जलाने निकली हैं..

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11 AUG 2021 AT 1:08

भीड़ में खोया सा कहीं...
लगता फ़लक का सितारा हैं,
अनजान चेहरों में-भी, बखूभी यू छुपाया हैं ,
"जाना पहचाना" बिखरा-सा , फिर कहीं कयामत आएगी .
मौसम बेईमान हैं जनाब, शायद फिर से बरसात आएगी ....

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11 MAY 2021 AT 4:22

घर बिके, रिश्ते बिके, अब "सांसो" का ही बिकना बाकी था,
फ़नाह हो चुकी रूह का सौदा तो अभी बाकी था।

बेजान जिस्म का सौदा कर, कितना तुम कमाओगे
शर्म करो ऐ हैवानों कहाँ अपना मुंह दिखलाओगे..

घर बिके, रिश्ते बिके, अब "सांसो" का ही बिकना बाकी था.......

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3 FEB 2021 AT 23:44

algunos sueños nunca mueren con el tiempo, y de vez en cuando te curan por dentro, según yo cada persona debe tener un hobby, que te ayudará a iluminar tus vida

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13 JAN 2021 AT 13:10

Cada vez nosotros pensamos, que la vida está corriendo muy rápido sin tener piernas , pero no pensamos que también tenemos las piernas para correr , siempre nos quedamos con nuestros problemas, como el pasado, la realidad, el fracaso y tenemos miedo de fallar; pero no pensamos que, el fracaso es una cosa qué nos enseña a correr como un campeón.

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12 JAN 2021 AT 0:39

एक जंगल में दो परिंदे , एक - दूजे को भा जाता हैं
सोच रहे थे जो दोनों , हासील उन्हें हो जाता हैं
अब हर रोज मिलों-तक उड़ान भर, आसमानों को चूमा करते थे,
सुबह का कब शाम हो जाना
हर पलों को वो बुना करते थे,

कभी एक दूजे से नजरें मिलाएं, कभी बरसात की बूदों से खेला करते थे,
कभी सुनसान सड़कों के सन्नाटे में , अपनी नज़्मों को ढूंढा करते थे,
जब -जब रूबरू होते , जंगल में खुशियां आ जाती,
जब - कभी हताश हुए तो मायूषी छा जाती

उस जंगल के ये राजा रानी ,
कहानी उनकी अब बढ़ने लगी
एक मायुष हुआ, तो दूजा अक़्सर अश्क़ बहाता था,
हर पल अपने अरमानों को, जाने क्यों दबाता था,

एक दिन शहर की हवा जंगल में चलने लगी ,
देखते ही देखते, जंगल पर हावी - होने लगी
तूफ़ान इस कदर बड़ा, एक ने शहर का रुख कर लिया,
दूजे ने उस जंगल में जाने क्यों, अपने को कैद कर लिया।

अब रोजाना उसकी उड़ान, उन वीरान सड़को से होकर जाती हैं,
न जाने उसे क्यों आज भी, वहाँ उसकी खुश्बू मिल जाती हैं
आज भी टूटे परो को साथ , शहरों के चोहराओं तक उड़ान भरता हैं,
क्या टूटी हुई कश्ती से भी कोई ,समंदर पार करता हैं
एक जंगल में दो परिंदे.....

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2 DEC 2020 AT 11:54

"ले चली हवा मुझे, यादों के भँवर में
लड़कपन-मासुमियत भरें, उस ज़िंदगी के सफर में"

थोड़ी दूर हवा के साथ, में बहता चला आया था
ज़िंदगी का पहला मोड़, हवाओं ने दिखाया था।

उस मोड़ में कदम मेरे, अब तेजी से जैसे बढ़ रहें
जैसे ज़िन्दगी बुला रहीं, राह नई दिखा रही।
सफर की थकान से, आराम मैंने कर लिया,
खुली जो मेरी आंखे, आँचल में किसी ने भर लिया,

वो ममता की एक मूरत सी, वो जन्नत की सूरत सी,
वो चंदा अपना मुझे कहती हैं, वो गंगा सी मुझमें बहती हैं,

सफर अब तेजी से बढ़ रहा , ममता के पाले में पल रहा ,
नन्हें कदम अब बड़ रहे , आँचल में उसके फल रहे ,

कभी तपती दोपहर की गर्मी में, कभी सर्द हवा की सर्दी में
खुद को संघर्ष में झोंकर , वो मुझमें खुद को पाती हैं
मुझे हताश देखकर कर, वो खुद भी रो जाती हैं

सफ़रनामा ज़िन्दगी का , यूँही चलता रहेगा...
ज़िन्दगी के सफर में हर कोई ,ढलता रहेगा
कभी ज़िन्दगी बेरंग सी होगी, कभी होली के रंग सी होगी,

इस सफर में कितने एहसास आते हैं , कितने-ही बिक जाते हैं
पर माँ की ममता वो ही रहेगी, माँ का एहसास वो ही रहेगा..

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2 NOV 2020 AT 0:59

La vida es una montaña que llena de caminos difíciles, unos esclan al everest, y otros solo ven desde el debajo , quiero escalar al everest para mis vida y sentimientos

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26 SEP 2020 AT 13:12

"रूठा हुआ कहीं कोने में , बैचैन-सा होकर फूट रहा
ख़्वाबों के आसमान से, एक तारा उसका टूट रहा"

राह उसे दिखी नहीं, अनजाने रास्ते निकल गया
मंज़िल को पाते पाते , आशियाना अपना भूल गया

अक्सर अनजान लोगो को रोकर , पता पूछा करता हैं
कभी बारिश की बूदों में साहिल को ढूंढा करता हैं

हर रोज-हर पहर, किसी के इंतेज़ार में रहता हैं
न मिले वो सुकून तो, अपने आप से लड़ता है

एक अनजान सी दुनिया को अपना, संसार बनाएं बैठा है
न जाने किस सपने को, अपना मान बैठा हैं

कभी रोता - कभी बिलखता, आसमान को निहारे बैठा हैं
नादान ये परिंदा कितने, जज्बात दबाएँ बैठा हैं

"रूठा हुआ कहीं कोने में , बैचैन-सा होकर फूट रहा
ख़्वाबों के आसमान से, एक तारा उसका टूट रहा"

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23 SEP 2020 AT 19:49

एहसासों के भँवर में काफ़िर बेनाम ये परिंदा
पास जाएँ तो, बेवजह धड़कता हैं
दूर जाएँ तो बेइंतहा तड़पता हैं

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