एक जंगल में दो परिंदे , एक - दूजे को भा जाता हैं
सोच रहे थे जो दोनों , हासील उन्हें हो जाता हैं
अब हर रोज मिलों-तक उड़ान भर, आसमानों को चूमा करते थे,
सुबह का कब शाम हो जाना
हर पलों को वो बुना करते थे,
कभी एक दूजे से नजरें मिलाएं, कभी बरसात की बूदों से खेला करते थे,
कभी सुनसान सड़कों के सन्नाटे में , अपनी नज़्मों को ढूंढा करते थे,
जब -जब रूबरू होते , जंगल में खुशियां आ जाती,
जब - कभी हताश हुए तो मायूषी छा जाती
उस जंगल के ये राजा रानी ,
कहानी उनकी अब बढ़ने लगी
एक मायुष हुआ, तो दूजा अक़्सर अश्क़ बहाता था,
हर पल अपने अरमानों को, जाने क्यों दबाता था,
एक दिन शहर की हवा जंगल में चलने लगी ,
देखते ही देखते, जंगल पर हावी - होने लगी
तूफ़ान इस कदर बड़ा, एक ने शहर का रुख कर लिया,
दूजे ने उस जंगल में जाने क्यों, अपने को कैद कर लिया।
अब रोजाना उसकी उड़ान, उन वीरान सड़को से होकर जाती हैं,
न जाने उसे क्यों आज भी, वहाँ उसकी खुश्बू मिल जाती हैं
आज भी टूटे परो को साथ , शहरों के चोहराओं तक उड़ान भरता हैं,
क्या टूटी हुई कश्ती से भी कोई ,समंदर पार करता हैं
एक जंगल में दो परिंदे.....
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