रोज़ रोज़ जितना मैं
तुम्हें लिखती
वह कितना
अधूरा होता
और हम को लिखा तो
वो भी कितना कम था
फिर मैंने!...
‘मैं ’ पर लिखना सोचा
पर ‘मैं’ अपने आप में ही
मुझे अधूरा लगा
तो मैंने अब
लिखना ही छोड़ दिया।-
बिन मौसम बरसात यह कभी-भी बरस जाते हैं
बता तू मेरे किस किस्से में नहीं है
बता क्यों तू मेरे हिस्से में नहीं है-
वो सुकून!
वो एहसास!
भी गज़ब ही था
जब हम तेरी बाहों में थे
हम अजनबी मिलकर
भी कितने जाने से थे-
You so close to me
But yet so far away
Where are we??
where you and I
In the same sky!
Just saying..
I owe you
I owe me
But you don't
And still...
You so close to me
But yet so far away
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मैं नहीं कहती.. कि वो सुलझे नहीं
बस इतना की वो मुझे समझे नहीं☘...-
हरि नाम का जाप करुँ
हरि बन मेरा मीत रे
हरि बिन सूझे ना कुछ
हरि बना मेरी प्रीत रे
हरि संग मैं रास रचाऊ
हरि ही मेरा मनमीत रे।।-
तुम्हारी इज्ज्त का खंडन हो और तुम्हीं को मनोरंजन का उपहास पात्र बना दिया जाए और उसी पर कई अलग-अलग विचारों वाले लोगों से टिप्पणियाँ की जाए। उन्हीं टिप्पणियों के बीच कोई यह गुनाह किसी और का तुम्हारी गलतियाँ बताकर कोई मड़ दे तुम्हारे सर और यह सुनकर कि तुम रो-रो कर देह से प्राण पसारु कर थोड़ी सिस्कियों पर आती हो की तभी दूसरे और कई लोगों के अचंबित कटु वचन सुनती हो और अपने व्यक्तित्व पर हजारों लोगो की सोच के दाग देखती हो और देखते-ही-देखते तुम्हे आबरू बेच चरित्रहीन घोषित कर दिया जाता है ।
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