वो अमृता है जारी रहेगी उसकी साहिर की खोज़
वो फिर भी अकेली है उसे कभी मत छोड़ना इमरोज़
तुम्हारे छूने पर भी वो अक्सर नाम लेगी साहिर का
रूक क्यों गए तुम उसे प्यार करते रहो ना इमरोज़
हँसता लम्हा तुम्हारा उसे साहिर की दर्द में रुला दे
तुम अजीबो गरीब शक्लें बनाकर उसे हंसाओ इमरोज़
अमृता को साहिर की तस्वीर निहारता देख
तुम कैनवस पे उसकी वही चित्र उतारो ना इमरोज़
स्कूटर चलाते हुए तुम्हारे पीठ पर साहिर लिखा उसने
चौंक क्यों गए उसे अनकही बातें लिख लेने दो इमरोज़
वो साहिर के बचे सिगरेट को होंठों से लगाए रहती है
तुम उसके लिए अच्छी चाय बनाओ ना इमरोज़
अमृता खुदको उसकी बेवा समझने लगी है
तुम पेंटिंग ब्रुष से उसके माथे पर बिंदी सजाओ ना इमरोज़
अमृता जीते जी हमेशा मरती ही रही है
अंतिम वक़्त में उसको जीना सिखाओ ना इमरोज़।
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