Raushan Gangadhar Jha  
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1 Police with pen.
Joined 28 March 2018


1 Police with pen.
Joined 28 March 2018
7 JUL 2023 AT 0:49

Thank you being my strong tea with little amount of sugar in the world of black coffee without any sugar.

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6 MAY 2023 AT 16:58

ज़िंदगी तमाम मुसीबतों से भरी हो
हर चुनौती अगले कदमों पे पड़ी हो
हर फैसला कुदरत का मंजूर हो
जबतक मेरे साथ तुम हो।
मेरे जान की बोली लगी हो
मुझे वर्दी में गोली लगी हो
टूटती सांसें जीने की जिद हो
जबतक मेरे साथ तुम हो।

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13 AUG 2022 AT 15:36

मैं किसी को बहनों की कभी गाली नहीं देता
सिवा इसके अपने बहनों को कोई तोहफे नहीं देता।

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1 DEC 2021 AT 22:23

धागे मेरे लिए जो मन्नतों के लाए जाते थे
हम जाके उसकी कलाई पे बांध आते थे

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23 NOV 2021 AT 19:32

वीरान दिल के जंगल में कोयल सा कुछ कुक रहा था
शहर से वो जा रहा था मानो मेरा सबकुछ छुट रहा था
दिल की बस्ती थी पुरानी दिल्ली सी आबाद कभी
वो कौन नादिर था जो फिर मेरा सबकुछ लूट रहा था
वो फिर आए शहर कभी मैं ना रहूँ उसे कहना जरूर
बंद दरवाजे की उसकी चौखट को कोई चूम रहा था।

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14 OCT 2021 AT 12:47

वो जब मेरे शहर में होती है
रब की मेहर मुझपे होती है।

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12 OCT 2021 AT 22:53

उनसे जब भी मिलने जाना होता है
मौसम को भी तैयार होना होता है ।

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31 AUG 2021 AT 19:24

वो अमृता है जारी रहेगी उसकी साहिर की खोज़
वो फिर भी अकेली है उसे कभी मत छोड़ना इमरोज़
तुम्हारे छूने पर भी वो अक्सर नाम लेगी साहिर का
रूक क्यों गए तुम उसे प्यार करते रहो ना इमरोज़
हँसता लम्हा तुम्हारा उसे साहिर की दर्द में रुला दे
तुम अजीबो गरीब शक्लें बनाकर उसे हंसाओ इमरोज़
अमृता को साहिर की तस्वीर निहारता देख
तुम कैनवस पे उसकी वही चित्र उतारो ना इमरोज़
स्कूटर चलाते हुए तुम्हारे पीठ पर साहिर लिखा उसने
चौंक क्यों गए उसे अनकही बातें लिख लेने दो इमरोज़
वो साहिर के बचे सिगरेट को होंठों से लगाए रहती है
तुम उसके लिए अच्छी चाय बनाओ ना इमरोज़
अमृता खुदको उसकी बेवा समझने लगी है
तुम पेंटिंग ब्रुष से उसके माथे पर बिंदी सजाओ ना इमरोज़
अमृता जीते जी हमेशा मरती ही रही है
अंतिम वक़्त में उसको जीना सिखाओ ना इमरोज़।

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24 AUG 2021 AT 19:41

मिलना चाहता हूँ मैं अभी नहीं पर एक वक़्त के बाद जरूर
जब तुम्हें किसी के खोने का मेरा होने का अफसोस ना हो
मैं बिछड़ने के सरहद पर तुमसे फिर मिलना चाहता हूँ
कल्पनाओं की लहरों से पार होकर वस्तविकताओं के किनारे पर तुमसे मिलना चाहता हूँ मैं ।

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7 JUL 2021 AT 0:13

उन्होंने मुझे बहुत गौर से देखा कहते हैं आप तो बिल्कुल बदल गए हैं
मैं थोड़ा चुप रहा फिर बोला पहले मैं, मैं होता था अब आप हो गए हैं ।

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