ओझल नहीं होता पास ठहर भी नहीं जाता
मिलकर मुझसे वो अपने शहर भी नहीं जाता
रहता नहीं ख्वाबों सा आँखों में वो
रेत सा हाथों से फिसल भी नहीं जाता
उसे पत्थर दिल कहना सही ना होगा
मोम की तरह वो पिघल भी नहीं जाता
दूर उससे होकर दिल में दर्द सा रहता है
अश्क बनकर आँखों से निकल भी नहीं जाता
जाम होंठों से लगाकर शाम को दिल में उतारा
दिल से अब उस शाम का असर भी नहीं जाता-
गुल्शन में फूल खिला है पहली दफ़ा
हमें कोई हमसा मिला है पहली दफ़ा
आसमाँ की ओर अब नज़र नहीं जाती
हमने चाँद-सा चेहरा देखा है पहली दफ़ा-
तेरे लब भले ही कुछ न कहे मुझसे
तेरे होठों का तिल लगातार मेरे लब चूमता है-
इशारे कुछ आपको भी करने पड़ेंगे मोहतरमा
बस मेरे इशारों पर मुस्कुराने को इश्क़ नहीं कहते-
अपने दिल पर तेरा कोई ज़ोर नहीं था
मेरे दिल के रस्ते में कोई मोड़ नहीं था
कुछ इस कदर तू मिलने आया मुझसे
भीड़ थी बहुत मगर कोई शोर नहीं था
तेरी ही आँखों ने तीर चलाया होगा
ज़हर ऐसा फैला जिसका तोड़ नहीं था
माना के 'बेवफ़ा' लफ़्ज़ कहा था मैंने
पर बा-ख़ुदा इशारा तेरी ओर नहीं था-
कल शब आँखें खुलीं तो आग की लपटें देखी हमने
नींद इस कदर हावी थी कि चादर ताना और दोबारा सो गए-
तन्हाइयों का अपनी हिसाब रख लेना
आँखों पर नींद नहीं मेरे ख्वाब रख लेना...
याद तुझे सताए जब भी मेरे होठों की
अपने होठों पर हौले से गुलाब रख लेना...-
खूबसूरत फिर से संसार न होगा
पहला इश्क़ बार बार न होगा
घंटों की आवारगी कसूरवार होगी
एक भी लम्हा ज़िम्मेदार न होगा
चूमने को माथा आगे तो करो
होठों से हमारे इनकार न होगा
बात आख़िरी रेशे तक तो आ गई
अब ये धागा तार तार न होगा
मिलेंगें कई लोग सफ़र की जानिब
ऐसा प्यार हमें हर बार न होगा
लहरों को मंज़िल माना है इसने
कश्ती से अब दरिया पार न होगा-
लाखों की भीड़ में अव्वल दिखना चाहता हूँ
अधूरे किस्से को मुकम्मल लिखना चाहता हूँ
कोई काम न हो तो आओ ना ख़्वाबों में
आज तुमपर कोई ग़ज़ल लिखना चाहता हूँ-
इलज़ाम सारे लगाए गए नदी पे
एक सैलाब आया था कल ज़मीं पे
झुलस गए थे शजर यूँ ही खड़े खड़े
उन्हें भिगोने की तोहमत लगी नमी पे
इंसाफ़ ज़रूरी है हाकिम पर ये क्या बात हुई
क़त्ल भी हमारा और मुकदमा भी हमीं पे-