साथियों का शहर वीरान पड़ा,
अभी और साथ की चाहत है,
बातें यूँ तो हैं हज़ार हुई ,
अभी और बात की चाहत है,
सड़कों पर उदासी छायी है,
शामों मे अब वो बात नहीं,
है चाय की टपरी अब भी वहीँ,
ये अलग है की हम साथ नहीं,
वैसे तो अब भी हस्ते हैं,
पर मुस्कान में अब जज़्बात नहीं,
बातें तो अबभी होंगी ही,
पर वो मस्ती के हालात नहींं,
यूँ तो हैं गुज़ारे लम्हे कितने,
फिर भी मुलाक़ात की चाहत है।
बस रहेंगे हमसब जुड़े हुए,
बस इसी बात से राहत है।।
- रत्नेश शर्मा
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