RATNESH KUMAR   (RATNESH KUMAR)
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Joined 20 October 2018


Joined 20 October 2018
26 FEB 2021 AT 11:03

मैं अगर खामोश हूँ, हलचल करे है ज़िन्दगी,
या तो मैं खामोश हूँ, या फिर रो रहा हूँ मैं।

युहीं पतझड़ सी है बिखरी, ज़िन्दगी की ख्वाहिशें,
या तो यही है जिंदगीं या कोई ख़्वाब जी रहा हूँ मैं।

एक झलक में, एक तलब सी, बनती या बिगड़ती ज़िन्दगी,
या तो एक एहसास है, या लाश है ये ज़िन्दगी।

मैं हूँ उलझा, तुम हो उलझे, दुनिया है उलझी जाल में,
या तो बंधक है ये जीवन, या फिर उड़ान है जिंदगीं।।

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14 FEB 2021 AT 10:13

नज़र से नज़रों का मिलना, कहा तो इश्क़ नहीं होता
न हो अगर नज़र पहली में, तो फिर वो इश्क़ नहीं होता।
उनकी एक नज़र में हाँ, एक में ना नज़र आये,
अगर मंज़र ये ना होता, तो फिर ये इश्क़ न होता।
झुकाकर अपनी पलकों को, शायद हाँ कहा उसने,
ज़बाँ से हाँ अगर कहती, तो शायर मैं नहीं होता।

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31 JAN 2021 AT 1:18

लाशों के शहर में लाश बनकर
जिंदा हूँ बस एक ख़याल बनकर,

पेट की भूख, शहर की धूप लेकर,
चल रहा हूँ, बस इंतज़ार बनकर।

दीवारे चार ठहरीं, एक छत एक द्वार ठहरी,
अंदर एक किनारे, पड़ा हूँ रात बनकर,

समंदर उमड़ रहें है, आखों से बह रहें हैं
चिता में जल रहा हूँ, कोई अहसास बनकर।

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16 AUG 2020 AT 1:00

हर रोज़ मर रहा हूँ मैं,
न जाने कैसे कर रहा हूँ मैं।
हर रोज़ जलती है लाश मेरी,राख रह जाती है,
न जाने कैसे जल रहा हूँ मैं।
जान, जहन, साँसें, सब चली जातीं हैं, धड़कन रह जाती है
क्या जाने, ख़ता क्या कर रहा हूँ मैं।
सिलसिले तो चल पड़े हैं यादें लिए, वादे लिए,
जाने क्यों ये दर्द फिर से सह रहा हूँ मैं।
एक तरफ़ा इश्क़ मुझे है, जान से मेरी
इसलिए ही मौत से शायद, लड़ रहा हूँ मैं।

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23 JUN 2020 AT 19:37

नाम बदनाम है, तो काम कर लेने दो,
तुम्हारे मोहल्ले में दो चार क़त्लेआम कर लेने दो।
एक मोहब्बत, एक चाहत, एक दिल्लगी होती है,
अगर बेक़रार नहीं है दिल, तो इंतज़ार कर लेने दो।
रात बाकी है, सुबह मोहल्ला जग जाएगा,
मुझे कुछ बात करनी है, बात कर लेने दो।
बहुत अचरज में रहता हूँ, तुम्हारे दोहरे दिखावे से,
मुझे तुमको भुलाना है, शुरुआत कर लेने दो।

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23 APR 2020 AT 21:44

वो एक लड़की है
उसे दस्तूर-ए-बाज़ार न समझा जाए,
अगर वो पलट कर बात करती है
तो उसे प्यार न समझा जाए।
और ये चाँद, सूरज, आसमान,
अपने जगह पर ही अच्छे लगतें हैं,
इन्हें घर में सजाने का सामान न समझा जाए।
मेरे अंदर जो शख्श है
वो काफी समझदार है
हिदायत है, की उसे नादान न समझा जाए।
मैं हर ज़र्रे का दर्द लिखता हूँ, मुझे शायर कहते हैं,
अर्ज़ी है, मुझे मन बहलाने का उपाय न समझा जाए।।

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14 APR 2020 AT 22:28

बहुत दिन हो गए
किसी के आँख में आंसू देखे,
चलो आज किसी का दिल दुखाया जाए
खिलौनों की दुकानें बंद हैं
चलो किसी के दिल को ही खिलौना बनाया जाए।
मेरा ख़ुद का मकान बन रहा है
चलो किसी दूसरे का मकान गिराया जाए।
और सुना है, मेरे बगीचे में फूल खिलने वाले हैं,
चलो किसी के गुलसन को पतझड़ से नवाज़ा जाए
झरने का पानी, नदियों तक जाता है
चलो, झरने को ही ज़हरीला बनाया जाए।।

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13 APR 2020 AT 20:43

यूँ दिल बहलाने से क्या होगा?
ऐसे बातों को छुपाने से क्या होगा?
हम तो इंतज़ार पतझड़ का कर रहें हैं
मगर जाने इन बहारों का क्या होगा?
बात ऐसी है, की तुम अपनी हद में रहो
ऐसे आँख दिखाने से क्या होगा?
हम वो माँझी हैं, जो समंदर का तह जानता है
अब मुझे दरिया में डूबाने से क्या होगा?
ख़फ़ा तो हर मोड़ पर कुछ लोग होतें हैं
समझाओ मुझे, की तुम्हारे जाने से क्या होगा?

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10 APR 2020 AT 10:04

मस्ज़िद में मुझको अक्सर
मेरे राम दिखाई देतें हैं
मंदिर की चौखट के भीतर
अल्लाह दिखाई देतें हैं,
खुदा के बंदों पर जब भी
उँगली उठाई जाती है
मेरे सपनों में मुझको
मेरे कलाम दिखाई देतें हैं,,
पर आज सुबह की लाली
बदली-बदली सी लगती है
भगदड़ के मंजर में मुझको
हिंदू -मुस्लमान दिखाई देतें हैं।

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5 APR 2020 AT 23:02

बहुत दूर चले आए
चलो खुद को ठहराया जाए,
ज़रा पैरों के छालों को भी सहलाया जाए

बेग़ैरत ही इंतज़ार कर रहें हैं वो
जरूरत है कि उन्हें अब समझाया जाए।।

अकेले सफर में मन मेरा भी नहीं लगता
वक़्त है कि खुद को बहलाया जाए।

यूँ तो चलना, रुकना, मिलना,बिछड़ना तो चलता रहेगा
मगर अब आँखों में मुलाकातों को छिपाया जाए।।

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