मेरी तिश्ऩगी ने चाहा था
महज़ एक श़बनमी क़तरा...
और तूने बख्श़ दिया
एक पूरा दरिया आग का....
ये तेरी फ़राख़दिली !!!!
मरहबा.....
मरहबा ....
— % &-
Ratan Singh Champawat
(Ratan singh Champawat)
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मौन जब मुखर होगा
संवाद तभी प्रखर होगा
जीवन एक कविता तो नहीं है लेकिन किसी कविता से कम भी न... read more
संवाद तभी प्रखर होगा
जीवन एक कविता तो नहीं है लेकिन किसी कविता से कम भी न... read more
Joined 27 May 2018
27 JAN 2022 AT 20:05
25 JAN 2022 AT 20:58
हुई जब आज़माइश़ बेक़रारों की।
मिटा दी दूरियां दोनों किनारों की।
ज़ुनूं की आग का मत पूछिए आलम
सजा दी महफ़िलें कितनी सितारों की।— % &-
24 JAN 2022 AT 21:27
नहीं डर अब चरागों को बुझाने से।
मिली है रोशनी खुद को जलाने से।
लहू में आग की जिसके रवानी है।
उसी के नाम पे सारी कहानी है— % &-
15 JAN 2022 AT 19:10
मनवा सुन ले मौन हो,नीरवता का नाद।
जीवन से मिट जाएगा, अनचाहा अवसाद।-
11 JAN 2022 AT 20:32
मुखोटे बन रहे मुकुट, सजा अनूठा स्वांग।
नित दिखता नेपथ्य में,अभिनय ऊटपटांग।-
25 DEC 2021 AT 19:37
तुम उतरने दो खुद को
शाम के धुंधले अंधेरों में
मैं कब से जलाए बैठा हूं
एक कंदील एहसास की-
16 DEC 2021 AT 21:03
जिंदगी कहीं मत जाना...
मिलता हूं एक छोटे से ब्रेक के बाद..-