** मैं हूँ राही मतवाला **
( एक दीपक की आत्मकथा )
अपने इस सूनेपन का, मैं हूँ राही मतवाला ।
अपने प्राण का दीप जलाकर, देता रहूँगा तुम्हें उजाला ।।
आलोकित हो राह तुम्हारी, ऐसी मेरी अभिलाषा ।
ज्योतिर्मय हों तेरी राहें, है यही दीये की प्रत्याशा ।।
हों चाँदनी से भी तेज धवल, तेरी राहें उज्जवल उज्जवल ।
सदगमय हों तेरी राहें, लौ कहे दीये की मचल मचल ।।
ज्योति पुँज की बुझती लौ तक, मैं करूँ तुम्हारी राह सरल ।
अमृतमगमय हों तेरी राहें, लौ प्राण - दीप की कहे अटल ।।
दीप तले जस बढ़े अंधेरा, लौ प्रज्वल होता जाएगा ।
जितना तुम आलोकित होगे, मेरा तम बढ़ता जाएगा ।।
पर तुम्हें प्रकाशित करने को, बनी रहेगी लौ ज्वाला ।
अपने प्राण का दीप जलाकर, देता रहूँगा सदा उजाला ।।
तुम्हें विलोकित करने में, मैंने सर्वस्व जला डाला ।
पर तुम निर्मोही मत बनना, बुझ जाएगा जलनेवाला ।।
बुझ जाएगा जलनेवाला । रुक जाएगा चलनेवाला ।
अपने इस सूनेपन का ,मैं हूँ राही मतवाला ।।
अपने प्राण का दीप जलाकर ,
देता रहूँगा सदा उजाला ।।
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