ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने । प्रणत: क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नम: ।।
हे कृष्ण, हे वासुदेव, हे हरि परमात्मा, हे गोविंद,
मैं अपने समस्त दुःखों के नाश के लिए आपके चरणों में अपनी श्रद्धा और समर्पण अर्पित करता हूँ।
आप मुझे सुख, शांति और समृद्धि वरदान करें।।-
निकली बातें जो छन के ।
कुछ बातें उन अपनों की ,
कुछ उनके अपनेपन के ।।
एक नफरत है जो पल भर में यकीन कर लिया जाता है।
एक प्रेम है जिसे महसूस कराने में जीवन बीत जाता है।।-
हमारे विश्वास, हमारी मान्यताएँ, हमारी इच्छाएँ और हमारी संगति—ये सभी तत्व यदि श्रेष्ठ और सत्प्रकृति वाले हों तो हमारा मस्तिष्क स्वस्थ और फलदायक रहता है।
यदि ये दूषित या निकृष्ट हों तो हमारा मस्तिष्क भ्रम, निराशा और नकारात्मकता से भर जाता है, हमारा मस्तिष्क उद्वेगग्रस्त होने लगता है।
अतः हमें अपने मस्तिष्क को रोज उत्तम, सकारात्मक और सृजनशील विचारों से भरना पड़ता है।-
जब बाह्य परिधि से हटाकर अंतःपरिधि में हम अपनी जीवनधारा को केन्द्रित करते हैं तब हमें अपने अन्दर की कलुषता दिखने लगती है। तब हम अपनी बुराइयों के प्रति कठोर तथा दूसरों की अच्छाइयों के प्रति मधुर होना शुरू करते हैं।
आत्मज्ञान कहीं बाहर से नहीं, हमारे अकेलेपन से आता है।-
मेरा जो बीत गया कब आएगा,
मेरा जो बीत रहा अब जायेगा,
माना कल नया फसाना आयेगा,
पर, मेरा भी जमाना आएगा।।-
केवल जंग में विजय से कोई शूर नहीं होता,
केवल अध्ययन से कोई पण्डित नहीं होता,
केवल वाक्चातुर्य से कोई वक्ता नही होता,
केवल धन देने से कोई दाता नहीं होता।
बल्कि,
इंद्रियों पर नियंत्रण रखने से इन्सान शूर बनता है,
धर्माचरण से इन्सान पण्डित बनता है,
हितकारक बात समझा सके ऐसा व्यक्ति वक्ता बनता है,
सम्मान पूर्वक दान देने से इन्सान दाता बनता है।-
मंजिल को पाकर जिया,
या मंजिल को भुलाकर जिया।
किसे किसे फर्क पड़ेगा कि,
तूने क्या किया।
मंजिल को भुलाकर जिया,
तो क्या जिया,
मंजिल पार जाने पर दिखेगा कि,
तूने क्या क्या किया।।-
जो ब्रह्मविचार की परम तत्व हैं, जो अभय देती हैं, जो मूर्खतारूपी अन्धकार को दूर कर बुद्धि प्रदान करती हैं, उन आद्या परमेश्वरी भगवती सरस्वती की मैं वन्दना करता हूँ।
संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर करने वाली मां सरस्वती हमारी रक्षा करें।।-
क्षितिज पर आया नया सवेरा,
आशाओं ने फिर से पंख बिखेरा।
हो हर उड़ान में नया सृजन,
हो हर क्षण में अभिनव जतन।
हो हर दिल में नूतन स्पंदन,
नववर्ष 2025 तेरा अभिनंदन।।-
सामने जब आईना नहीं हो,
तब तुम अपना रूप कहां देखोगे?
हृदय के दर्पण पर भी धूल जमी हो,
तब तुम अब और कहां निहारोगे?
सोचो, अब कहां कहां तुम झांकोगे ?
निरखना फिर भी बाकी है सोचो,
अब कहां कहां तुम ताकोगे ??
“वन्दऊं गुरु पद पदुम परागा,
सुरुचि सुवास सरस अनुरागा” ।।-