जिससे चाह के भी कुछ कह ना पाये...
दूर चले गये वो.. तो रोक ना पाये...
क्या खुब लिखा है ए मोहब्बत मेरा नसीब...
जिसको छोड़ भी ना सके और पा भी ना पाये....-
फक्त दोन पावलं सोबत चालायची होती...
पण सोबत इतकी आवडली की,
आता रस्ता संपूच नये असं वाटतं...-
कवितेत वेदना मांडून गेले...
शेवटच्या ओळीपर्यंत येता
डोळ्यांत पाणी देऊन गेले...
तुझे जाणे.........-
दुनियादारी की बातें...
उसे बस चाहना मालूम है
किसी को भूल जाना नही....
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इस बेवकूफ दिल की....
बार बार टूटकर भी
फिर ये राह पकड़ता है
मोहब्बत की...-
दर्द ए हाल ए दिल का...
गम सताता नही अब
पहले अधुरे प्यार का..
लेकिन आज भी कोई शाम
जब उसकी याद दिलाती है
फिर सिर्फ तन्हाई मेरा साथ निभाती है...
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हर दफा प्यार ने साथ निभाया...
ए जिंदगी तुझसे और क्या माँगे
जिसने सच्ची मोहब्बत का तोहफा देकर
मेरी दुनिया को जन्नत बनाया...-
कभी कभी
कही हमारे प्यार को किसी की
नजर ना लगे
फिर ये खयाल आता है
खुदा को किसी की
नजर कैसे लग सकती है...-
जब रूबरू हुई थी नजर तुझसे
कैसे बया करे उस पल को..
जिसने चुरा ली थी मेरी रूह मुझसे-