Lack of acceptance (कड़वा सच)
अब लोग खुद को स्वयं की नज़र से नहीं बल्कि दूसरों की नज़र से देखने लगे हैं तभी तो घिबली या फिल्टर्ड फोटोशॉप जैसे स्नैपचैट आदि की बल्ले बल्ले हो रही है....-
हमारी भावनाओं की रस्सी
के दूसरे छोर पर सदैव कोई न कोई खड़ा रहता है हमारे जज्बातों का एक सिरा पकड़े हुए ,
और फिर कहते हैं हम कि
स्वरचित हैं हमारी कवितायें या हमारा स्टेटस...!!-
दोहरे चेहरे एकदम बेदाग
दिल में ज़हर, विश्वासघात
आस्तीन के सांप ....
[ मैं नहीं पालती]-
सबसे अधिक वही अपनत्व असफ़ल हुआ
जो एकनिष्ठ रहा...
सबसे अधिक वही भावनाएँ छली गईं
जो निष्ठापूर्ण रहीं...
सबसे अधिक वही आँखें रोयीं
जो आस में रहीं...
सबसे अधिक वही उम्मीदें ढहीं
जो निश्छल रहीं...
छलयुक्त अपनत्व से बेहतर तो त्याज्य होना है!-
When the high level of values acquired in the mother's womb comes in contact with the outside world, it is not necessary that the label of being civilized and cultured remains on them.....
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" मन "
कभी उल्लसित तो कभी अचानक संतप्त
पहेली है मन....
खुद से संवाद,नही किसी से विवाद
संतुष्ट है मन...
पल पल टूटता विश्वास पर बरकरार है आस
कोरे भ्रम में है मन?
दिखता साबुत है बाहर
टूटा है बहुत कुछ अंदर, लहूलुहान है मन....
अधूरी चाह,अतृप्त आकांक्षा
भटकता है मन...
धोखा,झूठ,फरेब,दोहरे व्यक्तित्व की हकीकत
खूब समझता है मन....
यादों की सुनहली चादर,
रखूँ सहेज कर या छोड़ दूं
उलझा है मन...
कभी लगे राख के नीचे छुपा
अघोरी का बदन, क्या ऐसा है मन?-
Institution's head should spend far more energy catching their teachers doing the right thing than doing the wrong thing.
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Compliments on your appearance are cool , but when somebody compliments you as a person, the way your mind works, the way you carry yourself, your laugh, how peaceful your energy feels and how genuine your heart is---- those are top tier compliments. they just hit different.
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