उम्र आधी इश्क की यूं ही वो गंवाता रह गया,
बेवफ़ा कह कर मुझे बस आजमाता ही रह गया ।।-
स्वाधीनता की जंग जीत गए,
सभ्यता की आजादी बाकी है ।
एक बार नहीं कई बार कटे,
मजहब की आजादी बाकी है ।
वर्ण-सुवर्ण के मुद्दों से,
आरक्षण पर आजादी बाकी है।
भयभीत सडक पर कदमों की,
परछाईयो से आजादी बाकी है।
बलिदानी वीर सैनिकों की,
आतंक से आजादी बाकी है ।
गरीबी,भूख और शिक्षा की,
उन्नति की आजादी बाकी है ।
औरों से जंग जीत भी लें,
'स्व' से आजादी बाकी है ।।
रश्मि
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मेरी खामोशी में सन्नाटा भी है शोर भी है...
तूने देखा ही नहीं...
आंखों में कुछ और भी है...
गुलज़ार-
खामोश रह कर दूरियां खरीद ली मैने...
लफ्जों में खर्चे बहुत होते हैं....-
ए मेरे राज़दार...
अरसे से कई राज छुपाए रखा तुम में,
जो ज़माने से नहीं कह पाई,
जो किताबों में नहीं लिख पाई...
वो...जो आइने से भी छुपाया,
जो काव्यों में नहीं रच पाया,
वो सब... सिर्फ तुम में ही दफनाया...
जब मशीनों ने धड़कन का हाल सुनाया,
140/110 का किस्सा सुनाकर डराया...
डॉक्टरों की आंखों में भी हैरत छाई,
पहली दफा देखी, तेरी थकन की परछाई
तब सोचने लगी...इस लुका छुपी की कवायद,
तुम पर बहुत बोझ डाला है शायद...
कोशिश करती हूं कि, तुम खुशमिजाज़ रहो ,
किसी की बातों का, कोई असर मत रखो...
जानती हूं, यूं आसां नहीं सब सह पाना,
चुभते तीरों को दफन कर पाना...
पर गर मैं हूं...तो वजह भी तुम हो...
जो तुम घायल हुए, तो जाने मेरा क्या हश्र हो,
ए मेरे राजदार...तुम सलामत रहो,
अभी कई फ़र्ज़ निभाने हैं बाकी,
अभी नश्तर से कई तीर खाने हैं बाकी...
रश्मि...-
I am a strong deep rooted tree,
not a creeper
I have been sheltering many creepers,
And standing firm and strong
on my own...-
ज़रुरी है आखों से दरिया का बह जाना है...
मुश्किल बहुत है दिल ए आरज़ू कह पाना...
माना... खुदमुख़्तार हूं, मज़बूत इरादे हैं मेरे,
मुमकिन है, कभी जज़्बातों की रौ में बह जाना...
मेरी मुस्कुराहटें बनावटी नहीं लेकिन...
मुश्किल बहुत है हिचकियों को सह पाना...
रश्मि...
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मैने देखा है अक्सर...
अमृता जैसे इमरोज़ को इमरोज़ जैसी अमृता मिलते...
पर...
शायद इक्की दुक्की अमृता को ही कोई इमरोज़ मिलता है...-
फरवरी का प्यार, अधूरा सा एहसास,
न सर्दी का दामन, न वसंत का उजास...
दहलीज़ पर खड़ी ख्वाबों की कतार,
अधूरी सी फिज़ा, अधूरी सी बहार...
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