ए मेरे राज़दार...
अरसे से कई राज छुपाए रखा तुम में,
जो ज़माने से नहीं कह पाई,
जो किताबों में नहीं लिख पाई...
वो...जो आइने से भी छुपाया,
जो काव्यों में नहीं रच पाया,
वो सब... सिर्फ तुम में ही दफनाया...
जब मशीनों ने धड़कन का हाल सुनाया,
140/110 का किस्सा सुनाकर डराया...
डॉक्टरों की आंखों में भी हैरत छाई,
पहली दफा देखी, तेरी थकन की परछाई
तब सोचने लगी...इस लुका छुपी की कवायद,
तुम पर बहुत बोझ डाला है शायद...
कोशिश करती हूं कि, तुम खुशमिजाज़ रहो ,
किसी की बातों का, कोई असर मत रखो...
जानती हूं, यूं आसां नहीं सब सह पाना,
चुभते तीरों को दफन कर पाना...
पर गर मैं हूं...तो वजह भी तुम हो...
जो तुम घायल हुए, तो जाने मेरा क्या हश्र हो,
ए मेरे राजदार...तुम सलामत रहो,
अभी कई फ़र्ज़ निभाने हैं बाकी,
अभी नश्तर से कई तीर खाने हैं बाकी...
रश्मि...-
I am a strong deep rooted tree,
not a creeper
I have been sheltering many creepers,
And standing firm and strong
on my own...-
ज़रुरी है आखों से दरिया का बह जाना है...
मुश्किल बहुत है दिल ए आरज़ू कह पाना...
माना... खुदमुख़्तार हूं, मज़बूत इरादे हैं मेरे,
मुमकिन है, कभी जज़्बातों की रौ में बह जाना...
मेरी मुस्कुराहटें बनावटी नहीं लेकिन...
मुश्किल बहुत है हिचकियों को सह पाना...
रश्मि...
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मैने देखा है अक्सर...
अमृता जैसे इमरोज़ को इमरोज़ जैसी अमृता मिलते...
पर...
शायद इक्की दुक्की अमृता को ही कोई इमरोज़ मिलता है...-
फरवरी का प्यार, अधूरा सा एहसास,
न सर्दी का दामन, न वसंत का उजास...
दहलीज़ पर खड़ी ख्वाबों की कतार,
अधूरी सी फिज़ा, अधूरी सी बहार...
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"Some exits are quiet goodbyes, others are echoes of departure—whether you exit a place, a person, or they exit you."
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चंद ख़्वाब, चंद ख़्वाहिशें,
बंद दराज़ के कोनों में छुपी हुई...
बिल्कुल उस शहज़ादी के संदूक की तरह,
जिसमें कहानियां थीं, मुसीबतों की परछाइयां कई...
फिर यूं ही एक दिन... बे सबब...
दराज़ खोला, गर्द हटाई,
सांस ली उन सब ने, जो दम तोड़ रहे थे,
चंद अधूरे ख़्वाब, चंद बिखरी ख़्वाहिशें...
सुनो...
लगता है झिलमिलाती रोशनी में...
वे सब...पूरी हो रहीं...
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रिश्ते
कुछ रिश्ते अल्फ़ाज़ से परे होते हैं,
दिल के जज़्बात में बसे होते हैं।
ना कोई शर्त, ना कोई गिला,
बस सुकून से भरे होते हैं।
ख़ामोशियों में बात करते हैं,
दर्द को जो मुस्कान करते हैं।
इश्क़, दोस्ती, वफ़ा से परे
बेनाम से ये रिश्ते...
दिल में मगर मुकाम रखते हैं।।
रश्मि...
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वक्त की शाख से एक और फूल गिर गया,
बहुत सारी यादों के साथ ये साल भी गुजर गया...
कुछ ख़्वाब मुकम्मल हो गए,
कुछ हकीकत बनते बनते रह गए...
कुछ नए चेहरे दिल में आशियाँ बना गए,
कुछ पुराने अपनी रुसवाई दिखा गए।
चलो नए साल में फिर से आग़ाज़ किया जाए,
ख्वाबों के नए ताने-बाने को फिर से बुना जाए।
यादों के काफ़िले को फिर से सहेजा जाए,
हौसलों के चराग़ को फिर से रौशन किया जाए।
ग़मों के साये को पीछे छोड़ दें,
और खुशियों के नग़्मे को फिर से छेड़ा जाए।
फिर से नई तदबीरें बनाई जाएं,
जिंदगी के हर लम्हे को ख़ुशनुमा बनाया जाए।
चलो, इस नए साल की दुआ मांगते हैं,
हर सुबह, हर शाम को रौशन करते हैं।
... रश्मि ...-
गुलाब लाख इतराए महबूब के हाथों में कभी बालों में,
आखिर सोना तो उसे किताबों की बाहों में ही होता है...
जाने कितनी मुहब्बतों की कब्रगाह बनी है ये किताबें,
कितने गुलाबों का कत्ल ही इश्क की राहों में होता-