Rashmi Shahi Sharma   (रश्मि)
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Joined 14 February 2019


Joined 14 February 2019
9 JUN AT 20:33

खामोश रह कर दूरियां खरीद ली मैने...
लफ्जों में खर्चे बहुत होते हैं....

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3 JUN AT 13:46

अपने ही मन को मनाते मनाते...
जाने कितनी अनबन हो गई है खुद से...

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30 APR AT 9:33

ए मेरे राज़दार...
अरसे से कई राज छुपाए रखा तुम में,
जो ज़माने से नहीं कह पाई,
जो किताबों में नहीं लिख पाई...
वो...जो आइने से भी छुपाया,
जो काव्यों में नहीं रच पाया,
वो सब... सिर्फ तुम में ही दफनाया...

जब मशीनों ने धड़कन का हाल सुनाया,
140/110 का किस्सा सुनाकर डराया...
डॉक्टरों की आंखों में भी हैरत छाई,
पहली दफा देखी, तेरी थकन की परछाई

तब सोचने लगी...इस लुका छुपी की कवायद,
तुम पर बहुत बोझ  डाला है शायद...
कोशिश करती हूं कि, तुम खुशमिजाज़ रहो ,
किसी की बातों का, कोई असर मत रखो...
जानती हूं, यूं आसां नहीं सब सह पाना,
चुभते तीरों को दफन कर पाना...
पर गर मैं हूं...तो वजह भी तुम हो...
जो तुम घायल हुए, तो जाने मेरा क्या हश्र हो,
ए मेरे राजदार...तुम सलामत रहो,
अभी कई फ़र्ज़ निभाने हैं बाकी,
अभी नश्तर से कई तीर खाने हैं बाकी...

रश्मि...

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16 APR AT 9:38

I am a strong deep rooted tree,
not a creeper
I have been sheltering many creepers,
And standing firm and strong
on my own...

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25 MAR AT 10:38

ज़रुरी है आखों से दरिया का बह जाना है...
मुश्किल बहुत है दिल ए आरज़ू कह पाना...
माना... खुदमुख़्तार हूं, मज़बूत इरादे हैं मेरे,
मुमकिन है, कभी जज़्बातों की रौ में बह जाना...
मेरी मुस्कुराहटें बनावटी नहीं लेकिन...
मुश्किल बहुत है हिचकियों को सह पाना...
रश्मि...

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10 MAR AT 17:59

मैने देखा है अक्सर...
अमृता जैसे इमरोज़ को इमरोज़ जैसी अमृता मिलते...
पर...
शायद इक्की दुक्की अमृता को ही कोई इमरोज़ मिलता है...

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27 FEB AT 20:30

फरवरी का प्यार, अधूरा सा एहसास,
न सर्दी का दामन, न वसंत का उजास...
दहलीज़ पर खड़ी ख्वाबों की कतार,
अधूरी सी फिज़ा, अधूरी सी बहार...

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19 FEB AT 22:49

"Some exits are quiet goodbyes, others are echoes of departure—whether you exit a place, a person, or they exit you."

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13 JAN AT 21:47


चंद ख़्वाब, चंद ख़्वाहिशें,
बंद दराज़ के कोनों में छुपी हुई...
बिल्कुल उस शहज़ादी के संदूक की तरह,
जिसमें कहानियां थीं, मुसीबतों की परछाइयां कई...

फिर यूं ही एक दिन... बे सबब...
दराज़ खोला, गर्द हटाई,
सांस ली उन सब ने, जो दम तोड़ रहे थे,
चंद अधूरे ख़्वाब, चंद बिखरी ख़्वाहिशें...

सुनो...
लगता है झिलमिलाती रोशनी में...
वे सब...पूरी हो रहीं...

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6 JAN AT 13:51


रिश्ते
कुछ रिश्ते अल्फ़ाज़ से परे होते हैं,
दिल के जज़्बात में बसे होते हैं।
ना कोई शर्त, ना कोई गिला,
बस सुकून से भरे होते हैं।

ख़ामोशियों में बात करते हैं,
दर्द को जो मुस्कान करते हैं।
इश्क़, दोस्ती, वफ़ा से परे
बेनाम से ये रिश्ते...
दिल में मगर मुकाम रखते हैं।।
रश्मि...

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