किसी बसंत की तरह मत आना जीवन में,
कि लौट जाओ एक अंतराल के बाद
आना तो सुबह की तरह आना ,
रात की तरह ठहरना मेरे पास ,
किसी समुंदर की तरह न आना मेरे पास
लबालब भरे हुए ऊपर तक, आना किसी प्यास की तरह,,
एक शब्द की तरह मत लिखना मुझे
लिखना अर्थ की तरह , कि खिल उठे शब्द
एक एक करके
आना पंक्तियों की तरह
और बदल देना एक कविता में मुझे,,,
दर्ज़ रहूँगी तुम्हारे हृदय की पुस्तक के
किसी पन्ने में
क्योकि कवितायें कभी नहीं मरती-
कुछ बीज मोहब्बत के ज़हन में
जहाँ नमी दिखी,,,
बो दिए वहीं,,,,,,!!
रुग्ण समय की
छाती पर जमा कफ़ है
कालाबाज़ारी
वेंटिलेटर देह को
दे देता सांसें,
परन्तु , खेद है कि
आत्मा मर रही है
यहाँ-
गुज़र जाएगी ये रात भी माना काली है , मग़र
हर अमावस की रात का इक सवेरा होता है-
रोक लो , समझाओ, जुर्माना लगाओ कोई तो उस पर
एहतियात के दिन हैं और मौत गले मिल रही है ज़िन्दगी के-
प्रार्थनाओं में हमने
सुख नहीं माँगा कभी
माँगी तो
दुःख को निर्वहन
करने की थोड़ी और
अधिक क्षमता माँगी
क्योंकि
जीवन से जाना हमने
सभी सस्ती वस्तुयें ,
अधिक टिकाऊ और
भरोसेमंद नहीं होती-
श्वास की
नौका में सवार
समय के
तट के
एक छोर से
दूसरे छोर तक
पहुँचने का सारा
प्रयोजन
"जीवन" है-
आँखें
रात भर काटती दुःख
अमरबेल सा
हर दिन हरा होता जाता
दुःख
दुःख ने सुख को
कभी नहीं बताई
अपने हरे होने की कला
और सुख ने
अपने सूख जाने की
प्रेम जीवन में
दुःख सा रहा
जितना जी लिया गया
हरा होता रहा हर दिन
अमरबेल सा
प्रेम,,,!!-
हवाओं की कुछ ख़िलाफ़त भी रही
चलन भी जहां का बदल गया थोड़ा
बस्तियाँ हैं हर तरफ़ ख़ारों की यहाँ
अगरचे , गुलाबों सा महकते रहना तुम-
कीमत कम भी नहीं आँकी थी जौहरी ने
बस तुम्हारे शहर में चलन से बाहर थे हम-
ग़र हो सके, थोड़ा सा वक़्त ले आना मेरे लिए
सुना है कि , आज के दौर में कीमती बहुत है-