मुझे यह बोलती हुई खामोशियाँ पसंद है
उन्हें मेरे अलावा कोई सुन नही पाता
और वो मेरी कहानी किसी और को सुनाती भी नही
डर नही रहता आंसुओं के दिख जाने का
ना वो अनगिनत पर्दे गिर जाने का
जो हर ज़ख़्म के लिए नया सिलवाती रही हूँ मैं
यह ख़ामोशियाँ अक्सर समझाती है मुझे
की कभी कभी बोलना भी ज़रूरी है
दिल को यूँ हर पल बंद नही, बल्कि खोलना भी ज़रूरी है
पर फिर वक्त भी देती है मुझे
यह बात समझने का
और फिर नाराज़ भी नही होती
उन चंद दोस्तों की तरह
जिनकी प्यार भरी नाराज़गी मुझे यूँ देख नही पाती
पर क्या करूँ , शायद थोड़ा वक्त अभी और है
इन खामोशियों के साथ कुछ देर बैठने का
अपनी ज़िंदगी से चुप चाप रूबरू होने का ….
मुझे यह बोलती हुई खामोशियाँ पसंद है
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