हंसती खिलखिलाती हुई स्त्रियाँ
सहज स्वीकार नहीं की जाती
पाबंद किया जाता है इनकी हर हंसी को
ये कहकर कि सभ्य घर की औरतें
इतनी ज़ोर से नहीं हंसती...
सुनो, ये आज की स्त्री है जो मुक्त हैं
तुम्हारी दक़ियानूसी रिवाज से
बांधने की जितनी कोशिश करोगे
उतनी हीं स्वतंत्र होंगी ये…
और एक दिन यूँ हीं खिलखिलाती हुई
निकल जायेंगी तुम्हारी सोच की गिरफ़्त से
तुम्हारी हर कोशिश को नाकामयाब कर
क्योंकि अब इन्हें अपने हिस्से का आसमान
स्वयं लेने का हुनर आ गया है।
'रश्मि’
-