मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:
"ये (ग़ुलाम/सेवक) तुम्हारे भाई हैं,ईश्वर ने इन को तुम पर निर्भर कर दिया है,ईश्वर जिसके पास ऐसे सेवक को कर दे उसे चाहिए कि उस को वही खिलाये जो खुद खाता हो और वही पहनाए जो ख़ुद पहनता हो,और उस को किसी ऐसे काम पर मजबूर न करे जो उस के बस से बाहर हो।अगर ऐसा काम उस से ले जो उस के बस से बाहर हो तो ख़ुद उस काम में उसकी मदद करे।"
(हदीस:बुख़ारी, मुस्लिम)-
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"दुनिया के प्रत्येक व्यक्ति को गर्व करना चाहिए कि मानव जाति में एक ऐसा मानव पैदा हुआ जिससे मानवता का सर ऊँचा और नाम रोशन हुआ।मगर आप न आते तो दुनिया का नक़्शा क्या होता और हम मानवता के गौरव और सम्मान के लिए किसे प्रस्तुत करते?मुहम्मद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हर इंसान के हैं।उनसे इस दुनिया की रौनक़ और मानव जाति का गौरव है वह किसी कौम की सम्पत्ति नहीं उन पर किसी देश का इजारा नहीं।वह पूरी मानवता की पूँजी हैं।जिसपर सबको गर्व करना चाहिए आज किसी देश का मानव हर्ष एंव गर्व के साथ क्यों नहीं कहता कि मेरा सम्बन्ध उस मानव जाति से है जिसमें मुहम्मद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जैसा परिपूर्ण मानव पैदा हुआ"!!
(अबुल हसन अली नदवी)-
"जिन दिनों इस्लाम का झंडा कटक से लेकर डेन्यूब तक और तुर्किस्तान से लेकर स्पेन तक फहराता था, मुसलमान बादशाहों की धार्मिक उदारता इतिहास में अपना सानी नहीं रखती थी. बड़े-बड़े राज्य-पदों पर ग़ैर मुस्लिमों को नियुक्त करना तो साधारण बात थी.
महाविद्यालयों के कुलपति तक ईसाई और यहूदी होते थे. इस पद के लिए केवल योग्यता और विद्वता ही शर्त थी, धर्म से कोई संबंध नहीं था. प्रत्येक विद्यालय के द्वार पर ये शब्द खुदे होते थे : पृथ्वी का आधार केवल चार वस्तुएं हैं - बुद्धिमानों की विद्वता, सज्जनों की ईश प्रार्थना, वीरों का पराक्रम और शक्तिशालियों की न्यायशीलता ."
~मुंशी प्रेमचंद-
لاکھ گھر میں ہو اندھیروں کا نشہ
شمع تو پھر بھی جلائی جائے گی-
तुम ने जो मुहब्बत को नए नाम दिए हैं
उस से मैं बहुत आज परेशान हुआ हूँ-
दुहाई देने से कुछ न होगा मुद्दतों का ये तजुर्बा है
उन्हीं को मुंसिफ़ कहेगी दुनिया जो ज़ुल्म हम पे ढ़हा रहे हैं
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कोई भी हाल हो लेकिन हमें तो मिल के रहना है
हर इक तक़रीर में नेता यही इज़्हार करते थे
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کوئی بھی حال ہو لیکن ہمیں تو مل کے رہنا ہے
ہر اک تقریر میں نیتا یہی اظہار کرتے تھے-
चलो तुम नेक हो लेकिन ज़रा ये भी तो बतलाओ
ख़ुदा वालों के अंदर क्या अना और ज़िद्द भी होती है?
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