कोई मरहम, कोई खुशी, कोई अरमान अब नहीं,
जिस्म तो है यहां, मगर जान अब नहीं..........
जिस कदर आये यहां, उसी कदर ज़ुदा भी हुए,
खुद ही से फासले इतने, कि कुछ भी दरमियानं अब नहीं........
है सफर वहीं, राहें भी वहीं,
सिर्फ मेरे कदमों के निशान अब नहीं......
ज़िन्दगी थी तो उलझनें भी हजारों थी,
आज शुकुन तो ये है, कोई इम्तिहान अब नहीं.......
कौन साथ देता है, मौत के सिवा,
इतना तो वफादार यहां इंसान अब नहीं.........
सभी रिश्ते तो जहां मे सिर्फ दिखावे के हैं,
दो वक्त क्या बीता उन्हें हम याद अब नहीं.........
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