मैंने आज अपने जीवन के किताब मे अनुभव रूपी पन्नों को देखा तो सीखा.....
1-कि हमें अपनी मुसिबतों से खुद ही जुझना और लड़ना पड़ता है ,जो लोग कहते हैं हम तुम्हारे साथ हैं वो कभी साथ देने नहीं आते।।
2-हमें अपने भगवान के अलावा किसी और से उम्मीद नहीं करनी चाहिए क्योंकि उसने साथ ना भी दिया तो रास्ता ज़रूर देगा जिस पर आप अकेले चल सकोगे।।
3-किसी और से उम्मीद करने से अच्छा है, हम खुद पर भरोसा करें क्योंकि हमारी मुसिबतों को हमसे बेहतर कोई नहीं समझ सकता।।-
कोई मरहम, कोई खुशी, कोई अरमान अब नहीं,
जिस्म तो है यहां, मगर जान अब नहीं..........
जिस कदर आये यहां, उसी कदर ज़ुदा भी हुए,
खुद ही से फासले इतने, कि कुछ भी दरमियानं अब नहीं........
है सफर वहीं, राहें भी वहीं,
सिर्फ मेरे कदमों के निशान अब नहीं......
ज़िन्दगी थी तो उलझनें भी हजारों थी,
आज शुकुन तो ये है, कोई इम्तिहान अब नहीं.......
कौन साथ देता है, मौत के सिवा,
इतना तो वफादार यहां इंसान अब नहीं.........
सभी रिश्ते तो जहां मे सिर्फ दिखावे के हैं,
दो वक्त क्या बीता उन्हें हम याद अब नहीं.........
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तूझे पढ़ने की कोशिश में ऐ-ज़िन्दगी,
किताबों से मुँह मोड़ बैठे हैं हम।।
क्या निभायें किसी और से रिश्ते,
जो अब खुद से ही तोड़ बैठे हैं हम।।-
साथ हो ना हो पर एक-दूजे से बातें ज़रूरी हैं।
हर रिश्ते को महसूस करने के लिए मेरे दोस्त सिर्फ साँसें ज़रूरी हैं।।
ज़िन्दगी के इस दौर में जाने कौन सा मोड़ आखिरी हो।
तभी तो किसी रस्ते पर दो पल की मुलाक़ातें ज़रूरी हैं।।
वक्त ना हो मुलाक़ातों का तो भी कोई गम नहीं।
पर ज़हन मे अपनों की कुछ मिठी यादें ज़रूरी हैं।
मुसीबतें हमारे हिस्से की तो कोई कम कर नहीं सकता।
पर साथ देंगे हर घड़ी ऐसे ही कुछ वादें ज़रूरी हैं।।
कल जाना तो तय है इस दुनिया से सभी को रूलाकर।
पर हमारी वज़ह से आज हर होठों की मुस्कुराहटें ज़रूरी हैं।।-
वादा किया था मैंने जो,
उस वादे को तुम निभा देना।।
घर अपने मैं तो जा ना सका,
मेरी लाश को तुम पहुंचा देना।।
जो पूछे पिताजी मुझे,
उन्हें एक बुझा दिपक दिखा देना।।
मुझे ढूंढने लगे माँ की आखें जो,
उसको भी चाँद दिखा देना।।
वो बैठी है मेरी राह तके,
उसी राह पर मुझको सुला देना।।
मेरे बेटे ने जो पूछ लिया,
मेरी वर्दी उसे पहना देना।।
मेरी गुडिया मुझको पुकारे तो,
उसका सिर सहला देना।।
मेरे यार जो आ जाये सामने तो,
उनको तुम गले लगा लेना।।
घर अपने मैं तो जा ना सका,
मेरी लाश को तुम पहुंचा देना।।-
ना डर था किसी के रूठने का,
ना किसी को मनाने की फिक्र थी।
वो बचपन भी कितना हसीन था,
जहाँ ना कभी जमाने की फिक्र थी।।
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मेरी तकलीफों का मेरे मालिक एक किनारा देदे।
ज़िन्दगी आज ही छोड़ दें जो तूं अपना सहारा देदे।।-
माता-पिता, परिवार जन तथा शिछक का हमारे जीवन को समझने मे तथा सरल बनाने मे महत्वपूर्ण स्थान है, जिसके लिए हम उनके बहुत आभारी हैं किंतु......
हमारा जीवन तथा हमारे आसपास का वातावरण ही हमारा सबसे बडा गुरु है जो हमारे जीवन के प्रारंभ से अंत तक हमें कोई ना कोई सिख अवश्य देता रहता है।
अतः हमें यह जीवन प्रदान करने के लिए ईश्वर को कोटि-कोटि धन्यवाद।।
।।गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं।।-
अपनी ही माँ के शब्दों से सीखायी गई हूँ।
परायी बनी नहीं मैं, बनायी गई हूँ।।
भोलेपन मे गलती की, माँ मैने तेरे आँगन मे,
फिर क्यूँ ससुराल के नाम से हर बार डरायी गई हूँ।
माँ परायी बनी नहीं मैं, बनायी गई हूँ।।
नज़रों में खोट तो समाज के था,
फिर क्यूँ सलीके से गलत मैं ही बतायी गई हूँ।
माँ परायी बनी नहीं मैं, बनायी गई हूँ।।
तूने भी तो हजारों बार पराया कहा ना मुझे,
आज ससुराल से भी परायी कह के ही निकाली गई हूँ।
माँ परायी बनी नहीं मैं, बनायी गई हूँ।।
आज जा रही हूँ सबकुछ यहीं छोड़कर,
क्योंकि सभी के द्वारा बहुत सतायी गई हूँ।
माँ परायी बनी मैं, बनायी गई हूँ।।-
ज़िन्दगी जीने के लिए मेरे दोस्त ये साल ही काफी है।।
गर किसी ने पूछा हमारा हाल तो ये सवाल ही काफी है।।
मुसीबतें झेले बिना तो कुछ हासिल नहीं होता।।
सामना करने को तो दुनिया की दीवार ही काफी है।।
आसमां मे उड़ते -उड़ते थक गया जो परिंदे ।।
राहत पाने को सूखे पेड़ की एक डाल ही काफी है।।
हार गए जो हिम्मत तो ज़रा गौर से देखिए।।
जंग जीतने के लिए चीटियों की मिसाल ही काफी है।।-