कुछ लफ्जों में एक लफ्ज़ यूं कैद हुआ
वो तरसे तो हम पर मानो कहर हुआ||
कुछ कह ना सकने की नौबत हुई
वो चुप्पी से ही तो तोहमत हुई||
वक्त रहते दिल समझा लिया
मानो ये कहकर ही उसने दिल अपना बहला लिया||
कहीं बेबाक-सी दिखने वाली
तो कहीं खामोश पलकों से सिर हिला दिया||
जुबां से बयां ना कर पाई
उसने धीरे-धीरे अपना मन समझा लिया||
खुश है या नहीं मालूम नहीं
कहीं रोकर तो कहीं मुस्कुरा कर अपना दर्द छिपा लिया||
वो बेपरवाह-सी दिखने वाली ने
अंदर ही अंदर अश्कों का एक घर बना लिया||
हवा के एक झोंके ने उसका रूख यूं बदला हैं
मानो बरसों पुरानी डायरी को किसी ने करीब से परखा है||
अब कुछ कहना-सुनना उसके बस की बात नहीं
सब वक्त के भरोसे छोड़ उसने अपना दिल बहला लिया||
हाँ....! वक्त पर छोड़ उसने सब ,
अपना दिल बहला लिया||
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