घूमकर दुनिया सारी, फिर अपनी दुनिया में आ गए हम, कुछ मिले कुछ बिछड़े, कुछ अजनबी अपने हुए, सब जाना सब ,सब पहचाना, पर फिर भी लगे सब अनजाना, उस अनजानेपन को छोड़कर, अपनी छोटी सी दुनिया में आ गये हम, जहां से चले थे,वहीं आ गये हम।।
अक्सर दिखाई नहीं देता, क्योंकि शायद दिखावे की आदत नहीं, ऐसे प्रेम को न तारीफ चाहिए, और न ही बदले में प्रेम चाहिए, अगर कुछ चाहिए तो सिर्फ़ अपने प्रेम के द्वारा अपनो की खुशी चाहिए।।
अक्सर लोग चित्र को देखकर, चरित्र के विषय में निर्णय ले लेते हैं। किन्तु चित्र और चरित्र दोनों आपस में, भिन्नता रखते हैं।। किसी व्यक्ति, वस्तु और विषय की, बाहरी सुंदरता के साथ साथ उनके, आन्तरिक गुणों को जानना अति आवश्यक है।।