Ranjeet Kaur   (✍ रंजीतकौर.)
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Joined 23 February 2021


Joined 23 February 2021
8 FEB 2023 AT 5:54

खुशी क्या है
बस एक एहसास ही तो है
खूबसूरती भी कुछ और नहीं
बस खूबसूरत होने का विश्वास ही तो है
दुनिया क्या कहती है क्या नहीं
ये एक बात है
लेकिन जो है सबसे अहम
वो आपका खुद के लिए जज़्बात ही तो है
दौलत जहां में जिसे जितने भी मिल जाए चाहे लेकिन
हर दौलत से कीमती अपने साथ अपना और अपनों का साथ ही तो है

✍️रंजीत कौर

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8 FEB 2023 AT 5:52


खुशी क्या है
बस एक एहसास ही तो है
खूबसूरती भी कुछ और नहीं
बस खूबसूरत होने का विश्वास ही तो है

दुनिया क्या कहती है क्या नहीं
ये एक बात है
लेकिन जो है सबसे अहम
वो आपका खुद के लिए जज़्बात ही तो है
दौलत जहां में जिसे जितने भी मिल जाए चाहे लेकिन
हर दौलत से कीमती
अपने साथ अपना और अपनों का साथ ही तो है



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21 AUG 2022 AT 14:00

जिसे मेरे अपने कहते हैं मेरा गुनाह
रब की नज़र में वो मेरी मासूमियत रहेगी
मेरे प्यार को नाजायज समझने वाले काश ये समझ पाते
कि कलंक नहीं ये तो रब की नेमत रहेगी।
दूर इन्सान से कर भी दोगे तो क्या
मोहब्बत तो दिल में जिंदा रहेगी
हर रोज़ रुह को ज़ख्मी करने वाली ज़िन्दगी
जब देगी अपने ज़ुल्मों का हिसाब
तब अपनी ही नज़र में ये शर्मिंदा रहेगी।


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6 AUG 2022 AT 17:19


उधार की खुशियों के लिए अब दरवाज़े बंद हैं
खत्म हो रही है जिंदगी हकीकत की उदासियों के साथ
लेकिन मंजूर नहीं अब झूठी खुशियां क्योंकि
सच चाहे कितना भी अलग सही मेरे ख्वाबों से
पर सच तो सच है जो पछतावे के अफसोस से दूर रखेगा मुझे
इसीलिए अब मुझे बस सच पसंद है
माना कि जिंदगी में बेहिसाब हैं गम और खुशी के मौके चंद हैं
लेकिन उधार की खुशियों के लिए अब मैने किए दरवाज़े बंद हैं ।

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9 JUN 2022 AT 17:34

कभी लगता है कि शायद अब तक नहीं आप समझते मुझे
लगता है कि आपको एक बार फिर से मिलवाऊं खुद से
वक्त इजाज़त देगा या नहीं
या आप ही भरोसा नहीं कर पाओगे मुझपे
खुश रहना चाहती हूँ और नहीं चाहती कोई दुखी रहे मेरी वजह से
फिर क्यों आप और मेरे अपने ही
बन रहे हैं मेरे दुख की वजह

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9 JUN 2022 AT 17:31

अपने धर्म से इतनी अतिवादी सोच तक प्रेम होना के दूसरे के धर्म से घृणा हो जाए कट्टरवाद की श्रेणी में आता है और यह सभी धर्मों के अनुयायियों में देखा जा सकता है।

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9 JUN 2022 AT 17:28

जिंदगी में बहुत सी बातें ऐसी रहीं
जो ना तुमने कहीं जो ना हमने सुनीं
जो हुआ सो हुआ जिसकी भी थी ख़ता
पर मिल रही है जो सजा
लग रही है जैसे किसी की बद्दुआ

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9 JUN 2022 AT 17:23

वो दिन बीत गए जो दिन खुशी के थे
पागलपन था जिनमें वो दिन लापरवाही के थे
जिंदगी की हकीकत से बेखबर वो दिन जिंदगी से थे
अब बस यादें हैं और खामोश बातें हैं
संकोच है इस कदर घेरे हुए कि
क्या चाहते हैं हम ये खुद से भी कहां अब कह पाते हैं
नामुमकिन बातों के आगे हम इतने मजबूर हो जाते हैं
पल पल बस पछताते हैं पल पल बस पछताते हैं ..

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9 JUN 2022 AT 17:20

सच की बात ना करे कोई
क्योंकि सच कलयुग में टिकता नहीं है
कोई खरीदार नहीं है इसका क्योंकि
आज के दौर में गैर जरूरी हो गया है ये
इसीलिए यह बाजार में दिखता नहीं है
हर बड़ा अखबार हर बड़ा चैनल परहेज करता है सच से
क्योंकि सब खुश हैं झूठ को खरीदकर
इसीलिए सच आज के दौर में यारो बिकता नहीं है तभी तो जहाँ खरीदारों की भीड़ है वहाँ सच दिखता नहीं है ।

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9 JUN 2022 AT 17:06

बहुत बड़ी जिम्मेदारी है खुद को समझ पाने की ही
बस इसी को ठीक से निभा लें हम
ऐसे में कैसे मुमकिन हो
कि किसी और को समझने की जिम्मेदारी उठा लें हम
क्यों ना समझने - समझाने की जगह
बस यूँ ही कभी - कभी
एक दूसरे के साथ हँस लें मुस्कुरा लें हम।

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