महिलाओं के पास विकल्प क्यों नहीं हैं?
भीतर में हो रहे झंझावतों से कब तक लड़े वो...
या ओर भी कहीं खूबसूरत अन्त हो सकता है कहानी का
जैसा कि बरसों से ख्वाब है उसका, देखना प्रकृति के वो दृश्य जो आज से पहले सिर्फ चलचित्रों में ही देखे हैं...
क्यों इंतजार करती है, लेगा कोई उसके लिए फैसले?
और जब वो फैसले लेते हैं तब तक बहुत टूट चुका होता है अंदर ही कहीं...
फिर कहीं कोई जहां हो जहाँ से देखें वो, उन प्रकृति के दृश्यों को, जो विश लिस्ट में थे उसके कभी।-
Dreamer...Reader...
Teacher.
कहीं खुद को तो न भूल जाओगी माँ
आई हूँ नयी बनकर तुम्हारी जिन्दगी में,
मेरे नयेपन के लिए कहीं खुद को तो न बदल दोगी माँ।
लेकर आई हूँ हँसी चेहरे पर अपने,
मेरी हँसी के लिए कहीं अपनी हँसी तो न भूल जाओगी माँ।
रोते बिलखते हुए गुजारती हूँ राते,
मेरी नींद के लिए कहीं अपनी नींद तो न गंवा दोगी माँ।
होती हूँ यदा-कदा बीमार मैं,
मेरी बीमारी में कहीं खुद की बीमारी तो न भूल जाओगी माँ।
सीखलाते हुए दुनिया के दस्तूर मुझे,
कहीं खुद की बानगी तो न भूल जाओगी माँ।
मुझे सँभालते- सँभालते, कहीं खुद को तो न भूल जाओगी माँ।-
किताबें सफर करती हैं, एक हाथ से दूसरे हाथ
एक जीवन से किसी ओर के व्यक्तित्व में
शायद किताबों का अस्तित्व ही हैं, हो जाना किसी के सफर में साथ
सुकून मिलता है सौंपकर उनको किसी के हाथ
पता है कहीं न कहीं वह रुकेगी नहीं, जाएगी किसी तीसरे के हाथ...-
ये दौड़ते भागते लोग
पता नहीं क्या तलाशते ये लोग...
जहान ये लगता अपना सा
फिर भी
रोज अनजान डगर पर निकल जाते ये लोग
ये दौड़ते भागते लोग
पता नहीं क्या तलाशते ये लोग...
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To achieve a nameplate of your own name
First work hard
– Rani Suwalka-
कभी- कभी लोगों से दूर रहना भी सही है
हम उन नकारात्मक बातों से तो बच ही जाते हैं,
जो पहले से ही तैयार हो रखी हो,
हम से, हमारे हाल चाल पूछने के रूप में।-
Never work too much that people take you for
granted...
Never share too much thing that people even start to question you your own
identity...
-Rani Suwalka-
काश...
काश यह बातें तब होती
जब देशभर में चुनाव हुए
ना कि अब, जब चंद मेहमानों की उपस्थिति में फेरे हुए।
काश यह सख्ती तब होती
जब इसकी फिर से शुरुआत हुई
ना कि अब, जब चंद सांसे सिलेंडरों की मोहताज हुई।
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मतलबी है तू
है कोई पीडा़ तूझे, साथ जो दिया सबने
जो तू अब मिजाज ना पूछ सके
तो मतलबी है तू
है दम्भ तूझे, तेरे अदने से ज्ञान का
जो तू अब कर्ज न उतार सके नरम ह्रदयों का
तो मतलबी है तू
है बेठा किसी, एक आवाज के तले
जो तू अब सुन ना सके आवाज अपनों की
तो मतलबी है तू
हैं खंजर, तेरे सीने में कहीं
जो तू अब दिखावा करे अनजान बनने का
तो वाकयी मतलबी है तू...
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