शहर ये तेरा
शहर ये तेरा
बेगाना, अब क्यूँ मुझे लगता है
इस मर्ज़ का इल्म नहीं तुझे
फिर भी दानिशमंद, क्यूँ ये बना फिरता है
शहर ये तेरा
बेगाना, अब क्यूँ मुझे लगता है
हूँ जिस्म से यहाँ मैं
फिर भी रूह का तकाज़ा, क्यूँ ये नहीं मिलता है
शहर ये तेरा
बेगाना, अब क्यूँ मुझे लगता है
दिल को समझाया लाख बहुत
फिर भी विलायती, क्यूँ ये बना फिरता है
शहर ये तेरा
बेगाना, अब क्यूँ मुझे लगता है
हाल ए दिल बेजान पन्नों को सुनाया बहुत
फिर भी काफ़िर, क्यूँ ये बना फिरता है
शहर ये तेरा
बेगाना, अब क्यूँ मुझे लगता है
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