Rani Suwalka   (रानी सुवालका)
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Stories always in mind...
Dreamer...Reader...
Teacher.
Joined 5 March 2018


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3 OCT 2023 AT 22:28

किताबें सफर करती हैं, एक हाथ से दूसरे हाथ
एक जीवन से किसी ओर के व्यक्तित्व में
शायद किताबों का अस्तित्व ही हैं, हो जाना किसी के सफर में साथ
सुकून मिलता है सौंपकर उनको किसी के हाथ
पता है कहीं न कहीं वह रुकेगी नहीं, जाएगी किसी तीसरे के हाथ...

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6 MAY 2023 AT 22:15

ये दौड़ते भागते लोग
पता नहीं क्या तलाशते ये लोग...

जहान ये लगता अपना सा
फिर भी
रोज अनजान डगर पर निकल जाते ये लोग

ये दौड़ते भागते लोग
पता नहीं क्या तलाशते ये लोग...

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20 APR 2023 AT 18:13

To achieve a nameplate of your own name
First work hard

– Rani Suwalka

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1 APR 2023 AT 0:45

कभी- कभी लोगों से दूर रहना भी सही है
हम उन नकारात्मक बातों से तो बच ही जाते हैं,
जो पहले से ही तैयार हो रखी हो,
हम से, हमारे हाल चाल पूछने के रूप में।

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13 MAY 2022 AT 20:36

Never work too much that people take you for
granted...
Never share too much thing that people even start to question you your own
identity...

-Rani Suwalka

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17 AUG 2021 AT 14:10

मतलबी है तू


है कोई पीडा़ तूझे, साथ जो दिया सबने
जो तू अब मिजाज ना पूछ सके
तो मतलबी है तू

है दम्भ तूझे, तेरे अदने से ज्ञान का
जो तू अब कर्ज न उतार सके नरम ह्रदयों का
तो मतलबी है तू

है बेठा किसी, एक आवाज के तले
जो तू अब सुन ना सके आवाज अपनों की
तो मतलबी है तू

हैं खंजर, तेरे सीने में कहीं
जो तू अब दिखावा करे अनजान बनने का
तो वाकयी मतलबी है तू...

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10 MAY 2021 AT 21:12

काश...

काश यह बातें तब होती
जब देशभर में चुनाव हुए
ना कि अब, जब चंद मेहमानों की उपस्थिति में फेरे हुए।

काश यह सख्ती तब होती
जब इसकी फिर से शुरुआत हुई
ना कि अब, जब चंद सांसे सिलेंडरों की मोहताज हुई।

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17 APR 2021 AT 23:51

उसे राष्ट्र निर्माता कहा जाता है
नाजुक हाथों में कलम जो वो पकड़ना सीखाता है
पर शासित लोगों के खिलाफ, कहाँ वो कलम उठा पाता है।

जो कह देते राष्ट्र के सेवक खुद को, कहाँ उस राष्ट्र निर्माता की सेवा करते हैं
थमा के विपरीत परिस्थितियों में कार्य, खुद को राज में लाने का कार्य पूर्ण करते हैं।

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5 NOV 2020 AT 23:21

वादा आत्मसम्मान का


तारा दौड़ते भागते आखिरकार बस में सवार हो ही गयी। बस समय पर आ जाए और तारा उस बस में बैठ जाए, यह तारा के अनुसार दफ्तर पहुँचने के लिए उसके हर दिन का सबसे बड़ा क्रांतिकारी कार्य होता था।
उसकी सीट के पास बैठी दो महिलाएं जो किसी अन्य दफ्तर में कार्य करती थी, बातचीत कर रही थी उन दोनों महिलाओं की बातें ना चाहते हुए भी तारा को सुनाईं दे रही थी।
वो महिलाएं हंसी ठिठोली करती हुई आज के करवा चौथ के व्रत के बारे में एक दूसरे को बता रही थी कि आज उन्हें क्या उपहार मिलेगा।
तारा ने सोचा, क्या भौतिक वस्तुएं या एक दिन में दी गई कोई वस्तु प्यार जाहिर कर सकती है?
तारा ने सोचा, वह क्या मांगे और क्या मांगना सही होगा?
अनायास ही उसे कुछ याद आया, जो बात पिछले कुछ महीनों से उसे अंदर ही अंदर चोटिल कर रही थी, जो हो सकता है किसी को तुच्छ सी लगे पर उसे खटकती थी।
उसके पति द्वारा नहाने के बाद छोड़े गए अपने अन्तःवस्त्र।
कोई पुरुष अपने अंतःवस्त्र अपनी पत्नी या माँ से कैसे धुलवा सकता है? क्या वह इतना शारीरिक सक्षम भी नहीं कि खुद अपने अंतःवस्त्र धो सके?
तारा द्वारा बाल्टी भर कपड़ों में से उस अंतःवस्त्र को धोना कोई मेहनत का काम नहीं था पर वह उसके आत्म सम्मान को चोट पहुँचाता।
तारा इसी ऊहापोह में थी, "क्या वह भी एक वादा ले अपने आत्मसम्मान का!" तभी बस का हॉर्न बजा और तारा का स्टाॅप आने का एलान हुआ।

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1 NOV 2020 AT 23:07

शहर ये तेरा


शहर ये तेरा
बेगाना, अब क्यूँ मुझे लगता है

इस मर्ज़ का इल्म नहीं तुझे
फिर भी दानिशमंद, क्यूँ ये बना फिरता है
शहर ये तेरा
बेगाना, अब क्यूँ मुझे लगता है

हूँ जिस्म से यहाँ मैं
फिर भी रूह का तकाज़ा, क्यूँ ये नहीं मिलता है
शहर ये तेरा
बेगाना, अब क्यूँ मुझे लगता है

दिल को समझाया लाख बहुत
फिर भी विलायती, क्यूँ ये बना फिरता है
शहर ये तेरा
बेगाना, अब क्यूँ मुझे लगता है

हाल ए दिल बेजान पन्नों को सुनाया बहुत
फिर भी काफ़िर, क्यूँ ये बना फिरता है
शहर ये तेरा
बेगाना, अब क्यूँ मुझे लगता है

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