पहन कर लाल जोड़ा, द्वार पर खड़ी होगी
रुक्शत होगी आज,जिसके लिए सजी संवरी दुल्हन बनी होगी
एक अंजान को उसने अभी अभी अपना बनाया है,
डाल कर गले में वरमाला, एक नए सफर में कदम बढ़ाया है
छू कर पैरों को उसने , अपना कर्तव्य निभाया है,
आदर से उठा कर उसको, उसने भी मान बढ़ाया है,
बचपन बिती जिन गलियों में, जश्न ए बारात वहां सज आई है,
बहुत खुश हैं आज ओ, उसके फेरो की रात जो आई है,
मान कर साक्षी अग्नि को, वचन अब वो लेगी,
हर सुख दुख के साथी,अब उनके हाथों में हाथ होगी,
भर कर मांग में सिंदूर, गले में मंगलसूत्र सजेगी,
अंजान थी कुछ पल पहले जिससे,अब सात जनमो की साथी बनेंगी,
खड़ी होगी दहलीज पर बाबुल के, आंखे सबकी भीग आएगी,
आज होगी वो परदेशी, छोड़ सब, पिया घर जाएगी,
सोच ये सब बातें,जिस्म में सहम सा छाya हैं,
और अंत में बस यहीं बात याद आया है,
की एक दुल्हन बनी बेटी के सर,हाथ तुम रख देना
सर कभी ना झुकने देगी,बस विश्वास तुम ये रख लेना।।
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