ये कैसा सिलसिला है, किस बात का गिला है,
यूं मौन बेखबर तू, क्यूं धूमिल गिर पड़ा है?
प्रज्वलित प्रचंड ज्वाला है, तू बेमिसाल निराला है।
गर बुलन्द हौसला है, तो पर्वत भी चल पड़ा है।
दृष्टांत है भारत मस्तक, जो सप्त देशों में फैला है।
भूगर्भीय ज्वाला फट पड़ा, तब बना हिमालय श्रृंखला है।
-
बड़े काम की है ये तन्हाइयां
खुदी को खुद से रूबरू कराती हैं।
कहते हैं तीन चेहरे होते हैं इंसान के ,
उन तीनों चेहरों से पर्दे हटाती हैं ये तन्हाइयां।
पहला चेहरा जो ज़माने को दिखलाते हैं,
दूसरा चेहरा जो अपनों को दिखलाते हैं।
तीसरा चेहरा जो किसी को नहीं दिखलाते हैं,
वो तीसरे चेहरे की, हकीक़त दिखलाती है ये तन्हाइयां।
बैठो कभी गुफ्तगू करने खुद से ,
याद आएंगी जमाने भर की रुसवाईयां।
संकलित हुए हैं जो दर्द बहुतेरे ,
उन्हें अश्रु धार बना देगी ये तन्हाइयां।
अमूमन यादों के दरिया में गोते लगाकर,
सतह पर लौट आने का सफ़र है ये तनहाइयां।
टूट कर बिखरने से लेकर,
खुद को संभालने का सफ़र है ये तन्हाइयां।
भूत, वर्तमान औ भविष्य,
सबक दौरा करवाती ये खामोशियां।
एक नई दुनिया की सैर करवाती,
बड़े काम की है ये तन्हाइयां।
-
* "Jeena sikh lete to acha tha" *
Chalna sikha, daudna sikha
Sambhalna sikh lete to acha tha ,
Padhna sikha, likhna sikha
Jeena sikh lete to acha tha,
Ladna sikha, jhagadna sikha,
Dard baantna sikh lete to acha tha,
Muskurana sikha, khilkhilana sikha,
Chhup ke rona na sikhte to acha tha,
Tootna sikha, Bikharna sikha,
Nikharna sikh lete to acha tha,
Zindagi kaatna sikha, gujarna sikha,
Ise jeena sikh lete to acha tha!
-
हूं पिंजरे में कैद या फिर खुद में,
एक कशमकश सी है।
ज़िन्दगी तलाशती निगाहों में,
एक खालिश सी है।।
वो अमाप्य अम्बर में ,
एक कशिश सी है।
उस अनंत क्षितिज में,
एक मद्धम तपिश सी है।।
भरूं मै उड़ान गगन में ,
एक ख्वाहिश सी है।
वो उड़ान भरने को पंखो में ,
एक लरजिश सी है।।
टुकुर टुकुर ताकती निगाहों में,
एक प्यास सी है।
पिरोना है हौसला उड़ानों में,
ज़िन्दगी एक 'पिंजरे के पंछी' सी है।।
-
हमने तो यूं ही,
उकेरे थे जज़्बात।
खुद को लेखक या शायर कहूं,
कहां मेरी इतनी बिसात।
बहुत बहुत शुक्रिया,
आपकी मेहरबानी हुई।
मेरी कलम की स्याही,
आपके दिल को भा गई।।
-
जरा ध्यान से
कहीं तुम्हारी चिंगारी
मेरी मशाल ना बन जाए
थोड़ा प्यार से
कहीं मेरे अन्दर की ज्वाला
तुम्हारी राख का सबब ना बन जाए ।।-
नया सफ़र
ये जो मेरे मन में ,
आ रहा ख्याल है।
कुछ अजीब सी है उलझन ,
या कोई अनकहा सवाल है।।
सोचा आज लिख लू,
मन की जो बात है।
कर रहे बेचैन मुझे,
कैसे ये जज़्बात हैं।।
चंचल शोख और,
हंसते हुए चेहरे।
खिलता हुआ भोर,
रिश्ते ये गहरे।।
भाग रहा सरपट,
ये ज़िन्दगी का रेला।
देखो आ पहुंची झटपट,
इस सफर की गोधूलि बेला।।
खुशी और गम का,
ये मिला जुला भाव।
दूर हो रहा सर से ,
एक प्यारा सा छांव।।
आओ कर ले थोड़ी सी,
अब खुशी की भी बात।
क्यूंकि एक नया सा सफ़र
नई मुस्कान के साथ।।
-
संभल जाओ जरा,
अभी भी वक्त है।
यूं बेबस अधमरा,
ज़िन्दगी सख्त है।।
गगन और ये धरा,
सभी अनुरक्त है।
करने को पूरा,
इस सृष्टि का चक्र है।।
क्या प्रयास है अधूरा,
या पास नहीं वक्त है।
खौलता नहीं जो तेरा,
कैसा ये रक्त है।।
क्यूं बैठा है हारा,
तू पूर्णत: सशक्त है ।
चल उठ मुसाफिर जरा,
अभी भी वक्त है।।
-