सब कुछ करते हैं मगर जताते नहीं हैं,
कोशिश करूं तो भी दुख अपने...
बताते नहीं हैं,
जाने कहां छुपा कर रखते हैं,
"पिता है वो"
मेरी एक खुशी के लिए,
सौ दर्द सहन कर लेते हैं,
ढलती हुई उम्र और झुकते हुए कंधों पर भी,
जाने ये सब कैसे वहन कर लेते हैं,
"पिता है"
जो स्वयं के लिए,
कभी नहीं जीता है,, कभी नहीं जीता है....
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उसके बारे में क्या लिखूं ,
जिसने मुझे लिखा है,
सब कुछ व्यर्थ है ,
बस यही "मां" का अर्थ है।।-
यूं तो हर रंग घुलते और धुलते जाते हैं...
मगर जो रूह को रंग जाते हैं...
वो हमेशा याद आते हैं...
चलो! आज हम फिर किसी रूह को रंग आते है....
एक कृष्ण, एक राधा बन जाते हैं।।-
उड़ते हुए परिंदों के बाज़ू निकाल लेता है,
मैं कुछ कहूं तो वो तराज़ू निकाल लेता है।
फूलों से उसका रिश्ता इस क़दर पुराना है,
तोड़ के फूलों को उनकी ख़ुशबू निकाल लेता है।
फन कहूं या फनकार कहूं,
झूठ बोलकर वो आंसू निकाल लेता है।
एक नहीं, दो नहीं, बरसों निकाल लेता है,
वफ़ा के नाम पर चेहरे हजारों निकाल लेता है।
ढूंढ कर मतलब हर इक जहां से निकाल लेता है,
मुस्कुरा कर सलीके से वो सांसें निकाल लेता है।-
रात होने का ग़म हमसे पूछो,
अंधेरों से दोस्ती का सबब हमसे पूछो।
जो बीत रहे लम्हे तेरे बग़ैर,
उन लम्हों में खो जाने का डर हमसे पूछो।
ज़हन में दिन-रात बदस्तूर रहता है,
सीने में सुलगता वही तीर हमसे पूछो।
रंगों की बिसात पर बदरंग "रंगोली,"
किस द्वार पर सजेगी हमसे पूछो।
मेरे होने का मतलब वो मुझी से लूट गया,
वजूद का एक हिस्सा था जो कहीं छूट गया,
छुटी हुई राहों का ग़म हमसे पूछो,
सिसकती हुई आहों का नम हमसे पूछो।
कुछ और न पूछो "रंगोली",
यूं रोज़... रो, रो कर मुस्कुराने का फन हमसे पूछो।।-
रुखसत हुआ तो आंख मिलाकर भी नहीं गया,
वो यूं गया कि ये बता कर भी नहीं गया।।
यूं लग रहा है जैसे अभी लौट आएगा,
की जाते हुए चराग बुझा कर भी नहीं गया।।
बस एक लकीर खींच गया दरमियां में
दीवार रस्ते में बनाकर भी नहीं गया।।
घर में है आज तक वही खुशबू बसी हुई,
लगता है यूं की जैसे वो आकर नहीं गया।।
रहने दिया ना उसने किसी काम का मुझे,
और खाक में भी मुझको मिलकर नहीं गया।।
बस यही गिला रहा है उससे मुझे,
जाते हुए वो कोई गिला कर नहीं गया।।
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बरसों से ठहरा आंख का आंसू भी अब छूट गया,
एक भ्रम था तेरे होने का जैसे... वो भी अब टूट गया।।
आसमान में चांद पूनम का,,,, यूं ही नहीं पूरा है,
लेकर मेरी चांदनी ,,, कर दिया मुझे अधूरा है।।
आगे क्या लिखूं अब तुम ही बताओ मुझे..
चलो लिखती हूं,,,, क्या पढ़ने आओगे मुझे ?
रोऊं,,,तो न ही गले लगाओगे...न ही सहलाओगे,
क्यूं कि पता है मुझे,
इस तरह छोड़ गए हो की अब लौटकर नहीं आओगे,
चाहे कितना भी बुला लूं...तुम कभी नहीं आओगे,,,तुम कभी नहीं आओगे ।।
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मलाल कहूं, कसक कहूं,
या एक ख़लिस,
है तो बस यही कि,
कभी कुछ बोल न पाऊं,
क्यूं कि,
कुछ मर्यादा तुम्हारी है,
कुछ सीमाएं हमारी,
बस समझ जाना "मौन स्वर"....
बातें अनकही,अनसुनी,
तिरोहित सी,
देख लेना आंखों में,
"डूबी हुई... अव्यक्त अभिलाषा",,,,
शायद यही हो,
तेरे और मेरे बीच की परिभाषा।।-
बाकी तो हर धागा यहां कच्चा लगता है...
बंद आंखों से तुझमें खो जाना ही अच्छा लगता है....-
खुशी..... स्वयं का साथ
अगर खुशी किसी दूसरे के साथ जुड़ी हो तो वह आशाओं और अपेक्षाओं के कारण दुख, पीड़ा और क्लेश भी देती है।-