एक चढ़ती, एक उतरती सांस है,, ज़िंदगी
भागती घड़ी की सुइयों में इक आस है,, ज़िंदगी
बन जाए किसी की तो हिस्सा है,, ज़िंदगी
वरना होकर रह जाती किस्सा है,, ज़िंदगी
कोई जी लेता है तो किसी की कट जाती है,,, ज़िंदगी
जाने कितने भागों में बंट जाती है,, ज़िंदगी
पूछो किसी से तो.. सबकी अपनी-अपनी है,, ज़िंदगी
सच तो यही है कि काल के आगोश में है,, ज़िंदगी
जी लो इसे आज ही, अभी है,, ज़िंदगी
कल तो सबकी एक जैसी.. खामोश ही है,, ज़िंदगी।।
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