नाराज़गी में जो हाल ना पूछे
वो प्रेम कैसा
ख़ुश होने पे जो वादे करे
वो प्रेम कैसा
जरूरी नहीं कहा जाये सब,
जाहिर करना पड़े जो हर वक्त
वो प्रेम कैसा
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मैं प्रेम लिखूँ तो लोग सवाल पूछते हैं
हिज्र लिखूँ हाल-चाल पूछते हैं
सत्य लिखूँ तो बवाल करते हैं
बेवफ़ाई लिखूँ तो आशिक़ कहते हैं
सच तो ये है की लोग कुछ न समझते हैं
कि कवि ख़ुद पे न केवल लिखते हैं
:-रामजी पाठक-
मैं सोचता हूँ कह दूँ तुम्हें कुछ,
तुम कुछ न कह दो पर
ये सोचके रुक जाता हूँ!!
-Ramji Pathak
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सोचूँ जो तेरे बारे में तो तकलीफ़ होगी मुझे
न सोचूँ तो भी तकलीफ़ होगी मुझे
और किस कदर झूझ रहा हूँ उलझनों से
बता दूँ जो तो तकलीफ़ होगी तुझे-
तुम किसी ख्याल जैसी हो,जिसमें कौन नहीं खोना चाहेगा
तुम वो शख़्स हो,जिसका कौन नहीं होना चाहेगा
और तमाम उमर लग गई ढूँढने में तुझे
तू ही बता कौन तुझे खोना चाहेगा
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वो कहते है राम राम क्यों कहते हो इतना
मैंने कहा राम मेरे प्राण हैं
राम मेरा मान मेरा सम्मान हैं
राम संस्कृति मेरी राम ही मेरे संस्कार हैं
राम साकार हैं राम ही निराकार हैं-
कदर लोगों की ज्यादा की मैंने
लोग छलावा करके जाने लगे
जो कभी तरसते थे बात करने को
आजकल वो भी आज़माने लगे
और क्या कहूँ किस कदर होशियार हो गये लोग
हमे ही सिखाने लगे
कभी जो बात की मैंने आगे रह कर
हंस हंस के जमाने को बताने लगे
-Ramji Pathak-
चाँद ख़ूबसूरत लगा मुझे ,
थोड़ा दूर मुझसे लगा मुझे
मैंने ख़ुदा से कहा चाँद चाहिए
ख़ुदा ने तुझसे मिलाया मुझे-
जिस्म से कपड़े बदलने में सोचते हैं हम
यहाँ लोग जिस्म बदलने में गुरेज़ नहीं करते
और शराफ़त दिखाते हैं सामने सबके
पता नहीं कैसे इतना फ़रेब करते-