बहुत कुछ कह जाने को दिल चाहता है आज,
ऐसा लगता है मन मे बजने लगे हो एक साथ कई साज
जानता हूँ मौसीकी की तलाश में हो तुम भी आज
यकीन मानो मेरा हर लफ़्ज़ लिए होगा कुछ नया अंदाज़
गर सुन लिया इस मन को तो मुझ पर इनायत होगी
तेरे पास बैठ तुझे अपने आगोश में समेटने की पूरी हसरत होगी,
वो दिन होगा मेरे लिए बड़ा ख़ास जब तुम होगे मेरे पास,
उस दिन का जिक्र मैं कैसे करूं जब तेरी बाहे मेरे लिए नियामत होंगी।-
ये दो वक्त की रोटी की तलाश कहाँ ले आई क़ासिम,
वरना खेत भी अपना था और सारा जहाँ भी ।-
बीत आया वो पुराना पल मेरे अपनों के साथ जब बेगाने दूर हुए।
ख्वाहिश है ज़िंदगी जी लूँ इन्ही लम्हों में के ना जाने कब बेगाने फिर अपने हो जाएँ।-
चाय कि ये प्याली और मौसम बेख़्याली,
ख़्यालों से बातें कर रही है तेरी चाहत मतवाली।
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मन की चाल में मत आना।
मन ठहरा दोआब का पानी,
ना गंगा मिली ना जमुना,
बीच में जो रहा वो बेमानी।
सोच कर चला था पाने चाँद,
रुक गया जाकर तारों पर रहमानी,
फ़िक्रमंद थे जो वो भी छूटे पीछे
और जो आगे बढ़ चले ना थे बेईमानी।
मज़ा न इंतज़ार में था और ना ही मंज़िल में,
फिर सफ़र का मज़ा लिया तो फ़िक्रमंद क्यूँ ये पेशानी।
मन की चाल में मत आना।
मन ठहरा दोआब का पानी।-
सर्दी की वो रात।
एक रात थी वो जो कर चली सब कुछ सर्द,
कहीं जलसा बन बैठी जाम के छलकते प्यालों के बीच,
तो कहीं बन बैठी बहाना शोले जलाने का,
कहीं चल चली स्वाद का जायज़ा लेने किसी रेहडी पर,
तो इठलाने लगी चमकते ऊनी कपड़ों के बीच।
अचानक एक जगह रुकी वो सिमटी सी,
देखने उस माँ की बेबसी ढँकती अपनी ग़रीबी के कंबल को
पल्लू छोटा था पर माँ का प्यार बड़ा था,
सर्दी हार गई उस माँ के आगे देखा अचानक पौ फट गई थी,
सूरज अपनी लौ दिखा रहा था और अब सर्दी सिमट रही थी।
सर्दी की वो रात बहुत कुछ कह चली थी।-
कुछ तो ख़ास है इन वादियों में साहिल से बढ़कर, सन्नाटा है खामोशियों का फिर भी ख़ुशी है खुद से मुलाक़ात की।
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ये पैग़ाम है ख़ुशी का या फ़िज़ा है सुकून की,
के कमबख़्त किसी का दुःख है और ख़ुशी किसी और की।
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लम्हे बीत गए वो चार तुम्हारे साथ बिताए हुए,
तुम बहुत आगे चली गयी और मैं वहीं खड़ा रह गया।
आँखों में तुम्हारे थी वो भविष्य की रोशनी,
तुम चमक उठी और मैं बुझा रह गया,
पा लिया था तुमने फिर से वो तुम्हारा खेलता संसार,
तुम मुस्कुरा उठी थी और मैं उदास कहीं पीछे छूट गया,
परवाने की रोशनी से जगमगा उठे थे तुम्हारे कदम,
तुम जगमग राहों पर थी और मैं सुनसान राहें ताकता रह गया,
आज भी कहीं है बाक़ी तुम्हारी हंसी की खनक,
तुम चमकती रही और मैं बस तुम्हें देखता ही रह गया,
लम्हे बीत गए वो चार तुम्हारे साथ बिताए हुए,
तुम बहुत आगे चली गयी और मैं वहीं खड़ा रह गया।
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उसे फ़ासलों से चाहना ही मेरा मुक़द्दर था,
तारीफ़ जो की थी मैंने उसके सपनों की।-