मेरी ज़िन्दगी तो चली गई,,
इस ज़िन्दगी का मलाल क्या करेंगे,,,
अब इस हाल में,,
किसी ख़्याल का,, ख़्याल क्या करेंगे,,,,-
ये दिन गुजर जाने के बाद ।।
खुद करते हो,,क्रिस्तानी,,
इल्ज़ाम,, दूसरों पर लगाते हो ,,,,
अरे,, मौसम तो,, महीनों में बदलते हैं,,
तुम तो,, हर-दिन बदल जाते हो,,,,,,-
हम भी रहें मस्ती में,, तुम रहो मस्ती में,,
खामखां ना करना ज़िरह ,,,,,-
तुम्हें देखकर मैं तंदूरुस्त हो जाता हूं,,
हकीकत में,,, मैं,, दुरूस्त हो जाता हूं ।।-
जिंदगी अपनी,,
ज़माने के इशारे पर चलना क्यों ??
दुनिया बेरहम है कुछ भी कहती है,,
इसकी बातें, सुन-सुनकर,, मचलना क्यों ??
खुद के विवेक से काम लो,,
खांमाखां,,मोम कि तरह पिघलना क्यों ??
घर से मिले संस्कार को प्राथमिकता दो,,
दुनिया के रंग ढलना क्यों ??
ज़बान है,, तो,, जबाब भी दो,,
दुनिया जलाती रहेगी,,, आखिर जलना क्यों ??????-
रास्ता भी एक है,,मंजिल भी एक है,,
लेकिन क्या करें,, अब,, दिल है कि मानता नहीं,,,-
अब शमां क्या कहे,,
तुझ बे-दिल परवाने से
अच्छा होगा दिल दूर ही रहे,,
ऐसे दीवाने से,,-
और उसने आकर हलचल मचा दिया,,
ख्वाबों संग कुछ अरमां सम्हाले थे इसमें,,
उसकि बेवफाई ने बूंद-बूंद,,हर कतरा गीरा दिया ,,-
जीने कि क़सम खाकर,, मौत से मुलाकात करने निकला हूं,,
आखिर कब मुलाकात होगी,, यही बात करने निकला हूं,,,
***राम बाबू शाह***
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