जिंदगी कालिक थी, न रंगों का ठहराव था, जिंदगी तो उजागर तब हुई जब जिंदगी मे गुरु नाम का भी एक भाउ था!
जानवर है वो रूह, जो गुरु से कभी रु-ब-रू नहीं, अगर परखा जाए तो अकसर, जिंदगी का मतलब उसमें अभी सुरु नहीं!
इंसान वो जो जिंदगी के भवसागर से परे है, साथ जिनके माँ/पापा की परछाई और गुरु का आशिर्वाद भरपुर हैं!
भगवान को भी भगवान बनने के लिए, गुरु का ही ज्ञान काम आया था, माँ ने तो उगली थाम कर कहाँ था चलो, पर चलना कहाँ है ये गुरु ने ही सिखाया था!
जिंदगी गिरवी रख कर भी, न चुका पाएंगे हम जिनका कर्ज, माँ ही नहीं भगवान के बराबर, गुरु का भी है उतना ही महान दर्जा!
खिसा जिंदगी का कभी सुरू ही न हुआ होता, अगर जिंदगी को जिंदगी बनाने वाला कोई गुरु ही न मिला होता!
गुरु की चरणों का आसीस लेकर, आदर्श उनका पालन कर पाउ, जो खामिया है मुझमें भरी, दूर उससे अपनी वचन का पालन कर पाऊँ!
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