पूरी दुनिया में आज चिकन और मटन का व्यवसाय लगभग ध्वस्त हो चुका है और आज वो लोग भी शाकाहार अपना चुके हैं जो कल तक मांस खाने की लाखों दलीलें दिया करते थे...! सोचने वाली बात यह है की जरा सा खरोंच आ जाने पर हम अपने लिए डाक्टर की तलाश करने लगते हैं और लेग पीस बड़े प्रेम से खाते हैं, इसलिए कहता हूं की जानवरों की बद्दुआ असर करती है।
गांठ बांध लो की कोई भी जीव आपका भोजन नही हो सकता उसे भी जीने का उतना हीं अधिकार है जितना आपको...!
वैसे भी एक कहावत है
" जैसा खाए अन्न वैसा होवे तन मन " हम भोजन के रुप में जो भी चीजें ग्रहण करते हैं उसका हमारे शरीर और मन पर असर तो पड़ता है ।
इसलिए कोशिश करनी चाहिए कि खाने में सात्त्विक चीजें हीं हो तो बेहतर है...!
-मैं शाकाहारी हिन्दू..
(शाकाहारी हिन्दू परिषद छिंदवाड़ा-नागपुर)-
"गुलाल की इस दुनियां में
आओ किसी का पक्का रंग बनें..."
*Artificial रंग तो
दुश्मन भी लगा देता है।
-राम-
'रावण'
दस सिर काहो या सौ सिर का,
दस फीट काहो या सौ फीट का,
मरेगा रावण ही,
👉 "राम बनो"
विभीषण तो कल भी आया था,
आज भी आयेगा।
दशहरा आप मे शक्ति का संचार करें।
बुराई पर अच्छाई की जीत के
इस अटल उदाहरण पर
मनाएं जाने वाले त्यौहार दशहरा की,
आपके अंदर जो 👉राम है
उसको हार्दिक शुभकामनाएं।🙏-
क्रोध की अग्नि में यादों की लकड़ियां डाल कर दावानल की आग न बनाओ जो पूरे जंगल को ही जला दे,
अपमान की अग्नि में क्षमा का घी डाल कर उसे हवनकुंड की अग्नि बना लो... जिसकी पवित्र अग्नि में ईर्ष्या जल के खत्म हो जाये!!
®-
जीवन से जुड़ीं परम्पराएँ और संस्कृति को स्मरण कराते हमारे पर्व मानवीय रिश्तों और उनकी रक्षा को रेखांकित करते हैं।
सुरक्षा के साथ जीवन में रंग-बिरंगे रेशम के बंधन के द्वारा मानवीय पहलुओं को विस्तारित करता यह रक्षाबंधन पर्व हमें अपने परिवार के साथ सम्पूर्ण प्रकृति और राष्ट्र की रक्षा के प्रति हमारे कर्तव्यों की याद दिलाता और संकल्पित करता है।
"रक्षाबंधन की सभी स्वजनों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें"
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.... और फिर पितामह ने कहा था;
"मैं तब तक मृत्यु को आने नहीं दूंगा जब तक हस्तिनापुर को सुरक्षित हाथों में न देख लूँ"
नमन है
🙏🇮🇳-
अब तो मजहब कोई, ऐसा भी चलाया जाए
जिसमें इनसान को, इनसान बनाया जाए
आग बहती है यहाँ, गंगा में, झेलम में भी
कोई बतलाए, कहाँ जाकर नहाया जाए
मेरा मकसद है के महफिल रहे रोशन यूँही
खून चाहे मेरा, दीपों में जलाया जाए
Courtesy- #गोपाल दास "नीरज"
-r@m...
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एक विचार...
"किसी भी सड़क पर किसी बड़ी हस्ती का नाम देने की बजाय उस सड़क के ठेकेदार का नाम,पता एवं मोबाइल नंबर और निर्माण की तारीख लिखने से शायद सड़क ज्यादा मजबूत बन सकती है।"-
मैं वो कभी नहीं...
बनना चाहता..
जो मुझे दुनिया...
बनाना चाहती है...
या जो परिस्थितियाँ...
बनाने को आतुर रहती है...
मुझे इनके विपरीत जाकर...
अपनें अनुसार...
खुद को ढ़लाना है...
उस साँचें में, जैसा मैं चाहता हूँ...
अपने मुताबिक अपने जैसा...
~®@m-
आप सब का सहृदय आभार,
जिन्होंने मेरे जन्मदिवस पर शुभेक्षा प्रेषित की...उनके लिए
"एकाकी होकर जीना दुर्लभ है और कष्टप्रद भी, इसलिए हर उस भावना का कोई ना कोई सार्थी है जिससे इंसान जुड़ा है।
जुड़ते रहने से जीवन जीने का अर्थ मिलता है।"
03/07/2018-