Ramanpreet प्रीत का भवसागर   (#प्रीत_का_भवसागर)
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Joined 26 November 2023


Joined 26 November 2023

झोंके से बिखर जाते लोग
झंझावात कैसे झेल पाओगे
मुझे हमसफ़र कहने वाले
मझधार तो न छोड़ जाओगे

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तुझको बाहों में भरके, ज़िंदगी मेरी हसीन हो गई
ख़्वाबों की मोहब्बत, हक़ीक़त में मुमकिन हो गई

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मैं साँस लेती हूँ आहट तेरी ख़ुशबू की सहला जाती है
जब तुम नहीं होते तो चाँद की चाँदनी नहला जाती है

चाँद चमका पूर्ण पूर्णमासी में, भीगी हैं रातें उदासी में,
कुछ नहीं बचा,सबकुछ छूटा,तेरी याद बहला जाती है

तेरे बदन की वो नर्माहट जो दे जाती थी गर्माहट कभी
यादों की लड़ी से फिसल घाव वो पुराने गहरा जाती है

शबनम से नहाई रात तेरी लब की पंखुड़ी सी लगती है
हर निगाह को बेबस कर नायाब सुर्ख़ी पे ठहरा जाती है

छोड़ दिया जबसे तेरी जुल्फ़ों का आशियाना, बेघर मैं
ठौर न ठिकाना,सोने न देती याद,अश्क़ लहरा जाती है

तेरी यादों को मैं भी सुखा लूँ, भीगी रात से पूछता हूँ
वो अपनी ये चूअन सुखाने किस-किस सहरा जाती है

अब रूबरू क्या,ख़्वाब पर में भी दिखती नहीं कभी तू
'प्रीत' तेरी शिद्दत उन्स पर उदासी लगा पहरा जाती है

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पर्दा पोशी से ग़ीबत ये अपनी ही छुपाई न गई
पर्दा-ए-अर्ज़-ए-वफ़ा कर आँख मिलाई न गई

योम-ए-हिज़्र में बातें तो बहुत हुई, चाहकर भी
होंठों की परिधी पर बात दिल की बताई न गई

मुँह मोड़ गया जब भी दर्पण के बगलगीर हुआ
ख़ूब जश्न मनाया है अश्कों ने मेरी तन्हाई न गई

हाथों में थमी रह गई माला तेरी लहद पे आकर
खुली आँखों से तो माला-ए-समन पहनाई न गई

क्या ही जवाब देगा ये गुनाहगार दिल बहिश्त में
'प्रीत' आख़री वक़्त समनरू तेरी सहलाई न गई

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एक बार आ उल्फ़त जता फिर नज़र चुराते हैं लोग
कितनी ही नवाजिश कर लो नख़रे दिखाते हैं लोग

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फ़स्ले-बहारा ने फ़ासले थे, जितने भी सब ही सर्फ़ किए
तितली भी मचल उठी, मुस्कान में ही जज़्बात दर्ज़ किए

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2122 2122 2122 2122

तु ही तु हमदम दिखे जब आँखों को मूँदती हूँ
याद तेरी आती है तो ख़ुद ही ख़ुद को चूमती हूँ
तू ही पूजा मेरी तू पूज्य मेरे लिए सदा तुझको पूजती हूँ
'प्रीत' तेरे दर्श के लिए सोज़े-गम को चूमती हूँ

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पल भर ही तो, मिली थी निगाह, स्तम्भन हो गया
हाथ गुंथे, साँसों से साँसों का, परिरंभण हो गया

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ज़िंदगी के बचे लम्हों को तरतीब से करना पलाश बाकी है
मेरे दिल में रह-रह के मचलती कामना की तलाश बाकी है
प्यास जो थी पहले एक बूँद, तुझसे मिलके समंदर हो गई
बाब-ए-दिल पहली दस्तक दे दी, वहीं अधिवास बाकी है

अभी पहली मुलाकात हुई राह ताकता एक काश बाकी है
तुझको पाने से पहले कंधे पे ईहा की रखनी लाश बाकी है
तलाशते रहते ताउम्र मिलता वो ज़िंदगी चूक जाने के बाद
है रही रिफ़ाक़त सबसे मगर हयात में आना ख़ास बाकी है

बिखरे सहरा के कण-कण में, मुझे चुनेगी विश्वास बाकी है
बहुत जीया है सोज़-ए-ग़म तन्हा, तनिक परिहास बाकी है
मिलकर भी मिलती नहीं मुक्कमल मिल्कियत उल्फ़त की
पास है, साथ है,किंचित मृदुल छुअन-ए-अहसास बाकी है

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जो दिल चाहता है वही क्यों मिलती नहीं है
आगोश में आ तनिक देर में फिसल जाती है

दिल की कली पाबंद भी न हुई खिलावट की
जिसे चाहा वो आकर जूती से मसल जाती है

समझ नहीं आता आखिर ये हो क्या रहा है
मेरी राह में बद्दुआ के ये शूल कौन बो रहा है

पलभर ना सोया था दिलफ़रेब के आगोश में
मदहोश तो था मगर था कुछ अलग जोश में

दिल चाहे फिर से एक अतरंगी मुलाक़ात हो
हर बात खुलेपन से हो बिखरा न जज़्बात हो

एक लम्स का बहुत है इस एक जन्म के लिए
मजा आए तेरी बाहों का फंदा हो दम के लिए

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