रात को हमराज लिखा,दिन को गद्दार लिखा,
तुम याद ना आए जिस श्याम, उसको बेकरार लिखा,
जब दर्द के सेहरा से गुज़र कर ठहरे,
तब दर्द की रंगत को,हमने गुलजार लिखा,
लहू मासूमों का चौराहे पर बहता रहा,
शोर उठा इंकलाब, शहर वालो ने इंतजार लिखा,
रो पड़े सब सुनकर कहनी थी ऐसी दास्तां,
आइना देखकर जो दिल में आया बेजार लिखा,
सर बचाकर चले तो वो शहर याद आया " रमन "
जहां खबर रसांनो ने कत्लगाहों को बाजार लिखा।।
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