उसकी मार से बचने के खातिर लिपट उसी से जाते थे,
थोड़ी भोली सी बना के सूरत उसको ही सताते थे।
चेहरे पे जो गम की शिकन दिखे सहम वो अकसर जाती थी,
ख़ुद की आँखें नम कर लेती पर मुस्कान मेरी वापस ले आती थी,
हाँ, माँ रो लेती थी पर हँस दूँ मैं ऐसी बात बताती थी।-
अधिकारों पर हम बोले ,कर्तव्यों पर मौन ।
माता पिता के त्याग देखे कौन।
कितनी रोटियाँ ,कितने खिलौने ।
कितनी लोरियाँ ,कितने बिछावने।
कितने समर्पण ,कितने जतन।
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पैदा जब हुई मैं शहनाई न बजी , मेरे मां पापा को मेरे आने की बधाई ना मिली, देख मेरी मुस्कान लोगों ने कहना शुरू किया हाय बेटी हुई बेटा क्यों न हुआ ,मेरी मुस्कान भी लोगों को कांटे सी चुभा करती है ,यूं ही बोल पड़ते हैं अक्सर बेटे हंसा करते हैं बेटियां न हंसती हैं ।
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मांगी अगर एक चीज तो बाजार ही खरीद लाए ,
फर्ज तुम्हारा भी है की बुढ़ापे में पिता की जरुरते पूरी हो जाएं।-
मुझे भी अपने सपनों को पूरा करने दो ये हक है मेरा,
मुझे भी आसमां की ऊंचाईयों में उड़ने दो ये हक है मेरा।
बेटी होना मेरा गुनाह तो नही ,
फिर बेटे की तरह मेरे अधिकार क्यों नही?
बेटे को संतान मुझे बोझ क्यों समझते हो?
पैदा बेटा ही हो ऐसी तमन्ना क्यों करते हो?
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सच पूछो तो लोगों से रूबरू होना अच्छा नहीं लगता, क्योंकि अब इस दुनिया में मां के सिवा कोई सच्चा नहीं लगता।
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पल पल घटती हैं ये सांसे,
सुख दुःख आते जाते हैं।
जीवन एक संघर्ष धरा पर,
फिर क्यों हम इतराते हैं।-
नए सिरे से शुरू करें,
मंजिल अपनी पाने को नयी उमंग और उत्साह भरे,
नए सिरे से शुरू करें,
नई सोच हो नए तरीके और खुद पर विश्वास करें ,
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मेरे जीवन की किताब में महज एक पाठ हो तुम।
अब किसी और के लिए उसके जीवन की किताब हो तुम।-