सजेगी लकड़ियां कटेंगे बंधन
और हम आज़ाद हो जाएंगे
देखते रह जाएंगे इस जहां वाले
रफ्ता रफ्ता उस जहां के हो जाएंगे-
सुबह होने को है माहौल बनाए रखिए...
है घाटे का फिर भी हमने ये सौदा किया है
इस दफा इक रोजा नाम से उसके किया है
क्या बताएं कैसे बताए क्या क्या सोचते हैं
एक बार फिर हमने पत्थर को देवता किया है
मोहब्बत सिर्फ पल दो पल की नहीं थी
जवाब का इंतजार हमने एक अरसा किया है-
हो घर में लोग चाहे जितने वीरान लगता है
बिना बेटियों के घर सुनसान लगता है-
कुछ पढ़ लेते हैं
कुछ लिख लेते हैं
कुछ शब्द संजोने आते है
कुछ भाव पिरोने आते है
ये जो मोती है शब्दों के
इनको माला में गढ़ लेते हैं
चलता रहता है जाने क्या क्या
जब भर जाता हूं पूरा तो
थोड़ा सा बह लेते है
जब हो जाता है बोलना मुश्किल
तब कलम उठा कर लिख लेते है-
अब यूं तो ज़रूरत नहीं किसी की
मगर तुम साथ दो तो अच्छा लगेगा
दूर से बड़े खुश लगते है सब
पास से हर कोई अकेला मिलेगा
मर जाओगे तन्हाई में घुट कर
तुम्हारे बाद वहीं पर मेला लगेगा
यूं तो कुछ खूबी नहीं हम में मगर
हम जैसा ढूढ़ने में तुमको अरसा लगेगा
पाना बहुत मुश्किल नहीं हमको
थोड़ी सी परवाह और प्यार
इस में क्या ही खर्चा लगेगा-
तेरे चेहरे के मासूमियत और आखों के ये मस्ती
करवाएगी जाने क्या क्या, क्या क्या कहर डालेगी
साड़ी में जूड़ा बनाते देखकर शरमा जाए चांद भी
उफ्फ तेरी ये अदाएं जाने कितनों को मार डालेगी-
हंसी क़ातिल, होठ गुलाबी
आखें बिल्कुल जैसे कमल है
मेघों से लहराते बाल हिरनी सी चाल
बात करने का लहज़ा भी सरल है
उस पर क्या शेर कहेगा कोई
वो खुद एक मुकम्मल ग़ज़ल है-
मां थी तो हम बच्चे थे
मां थी तो हम सच्चे थे
मां से सारा घर गुलज़ार था
मां को सब से बराबर प्यार था
मां ही तो सारे रिश्ते निभाती थी
इस चाहरदीवारी को घर बनती थी
मां सहरा में पानी की आस देती थी
मां ही तो सपनों को आकाश देती थी
पढ़ी लिखी कम थी पर पूरा ज्ञान था
मां के पैरों के तले पूरा आसमान था
मिल रहा है सपनों का जहां धीरे ही सही
मां के बिना इक खालिश सी रहती है
दिल एक कोने में हर पल रहती है
अब बस मां आखों से बहती है-
अपनी अना से मजबूर हुए जाते है
हम दोनों इक दूजे से दूर हुए जाते है
यूं तो तुम्हारी मोहब्बत पर शक नहीं जानेजां
बस तगाफुल पर सोचने को मजबूर हुए जाते है-
रहे जो वनों में साथ चैन से
महलों का सुख उनको मिला नहीं
भाग्य देवता एक बार फिर दोनों को छल गए
देखो खेल नियति का रिश्ते सारे पल में बदल गए
माता सीता गई वनवास और
वनवासी राम महलों में हो गए
दोषमुक्त सिया जली नहीं आग में
ले लिए सब दोष अपने सिर
और राम जल में ही जल गए
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