मुझे जन्म देने वाली माँ के अलावा
दाई भी मेरी जाति की नहीं थी
न मैं मेरी जाति के बच्चों साथ खेला
न कभी पढ़ा
न पढ़ाया मुझे मेरी जाति के अध्यापकों ने
न दोस्त बने मेरे
मेरी जाति के लोग
न प्यार मिला मुझे जाति में
न आर्थिक मदद मिली मुझे जाति वालों से
किराए से भी नहीं रहा मैं कभी
अपनी जाति के मकानों में
मेरी परवरिश ,मेरी शिक्षा ,
मेरा चरित्र निर्माण मेरी जाति से बाहर हुआ
मेरी मौत का दुःख भी
सभी जातियों को होगा
जाति के बारे में मेरी समझ बस इतनी हो सकी
जाति बहुत हल्क़ी चीज़ है
हल्की नज़र से देखने पर ही दिखती है
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