सुख़नवर होना भी...
इतना आसां नहीं यहाँ
खुद की आह पढ़कर...
लोगों की वाह सुननी है-
हमने भी दिया था हवाला किसी को
हरदम खुश रहने का.....
गुज़री खुद पर तो मालूम हुआ
ये भी नहीं इतना आसां....।-
धरती पर भगवान कहाने वाले, पिता मेरे तुम्हें करूँ क्या अर्पण
अंजुरी भर नीर अंजुरी भर क्षीर, श्रद्धा सुमन संग मैं करता तर्पण-
कहते हैं नदियों के किनारे नहीं मिलते
सच यह भी कि अपनों के सहारे नहीं मिलते
हम तो मुद्दत से खड़े हैं तेरे इंतज़ार में
मगर हमें तेरी आँखों के इशारे नहीं मिलते।-
मालूम नहीं तुम्हें कितने पास हो हमारे
और ये भी बता दें कितने खास हो हमारे-
किस्सा अपनी मोहब्बतों का आम हो जाये
जब मैं बनू राधिका तू मेरा श्याम हो जाये-
तेरा तो नहीं मालूम मुझे
मगर हाँ......
मुझे तुमसे मुहब्बत है
बेतहाशा......।-
करके हराम नींदें
खुश रहने का वास्ता दे गए।
ताजिंदगी ना भूलेंगे
वो ऐसी दास्तां दे गए।-
वो अखरता नहीं अब...….
क्योंकि......
कमबख्त दिल को भा गया है,
और आँखों में समा गया है...।-
यहाँ कौन हुआ आबाद
करके मोहब्बत.......?
ये बात पूछने वाले भी.....
मोहब्बत कर बैठे।-