Ram Niranjan Raidas   (Ram Niranjan Raidas)
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Joined 5 August 2017


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7 SEP 2023 AT 19:55

धर्म के स्वामी नहीं वो खुद एक धर्म हैं
सुदर्शनः से तेज और ममत्व से वो नर्म हैं
पावक के वो पर्ण हैं हिम का ठंडा कण हैं,
चक्रधारी है धरा में श्री हैं, श्रीकृष्ण हैं।

पाक हैं वो कोंपल से बरगद से जटिल हैं वो
बालपन की मासूमी में रणनीतिक कुटिल हैं वो,
एक पल में संहार करे और दूजे पल उद्धार करे,
नियम का वो संतुलन और खुद एक नियम हैं वो

वो धरा का संतुलन हर जिंदगी का मर्म है,
वो है पिता इस जगत का वही परमानंद है,
वो मिला है जिसे खुद से ही मिला है वो
जिसके हम सब अंश है वही धरा स्वरूप वो।

वो है धरा का एक रूप खुद एक धरा है वो।
वो मिले तो सब मिले है परम ब्रह्म वो,
वो है परम आत्मा हर आत्मा में बसा है वो,
वो मिला तो सब मिला न है न कोई वहम वो।

तुम खुद ब्रह्म अंश हो है परम् ब्रह्म वो,
वो न किसी धर्म का है खुद एक धर्म वो!

- राम निरंजन ‘ऋतुपर्ण’

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3 JUN 2023 AT 17:22

सफर करने से मंजिल से पहले
सफर खत्म हो जाता है,
कुछ दरिंदे है जो रेल की पटरी,
पुल, इमारतों और सड़कों के नाम पर
चंद रुपयों में जमीर बेच
गुणवत्ता से समझौता कर
एक कब्रिस्तान बना रहे होते हैं।

कुर्सी की आसक्ति
और पीढ़ियों की खुशियां जुटाने में लगे हुक्मरानों
को किसी की पीड़ा से क्या मतलब
किसी की मौत से क्या मतलब!

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13 MAY 2023 AT 1:26

कितना अनूठा मैं एक बाजार लिए फिरता हूं,
सब रंगों का घुला एक किरदार लिए फिरता हूं,

आओ देखो जहन में सारी जो कमाई मेरी है,
मैं उन सारी जिल्लतों का श्रृंगार लिए फिरता हूं।

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8 MAY 2023 AT 0:54

सुबह जागता हूं लेकर नई शख्सियत अपनी,
हर रात उस शख्सियत को छोड़ देता हूं..

हर रात देखता हूं उसे आईने में जी भर के,
हर रोज रात वह एक आइना तोड़ देता हूं।

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1 MAY 2023 AT 14:03

हम सब मजदूर हैं!

मजदूर सिर्फ वह नहीं है जिसके हाथ में कुदाल, फावड़ा, हंसिया, खुरपी, हल, हथौड़ा, कन्नी, बोरे आदि का बोझ है..
..एक जिम्मेदारी जो हम सब ढो रहे होते है कोई पारिवारिक जिम्मेदारी, कोई सरकारी, कोई प्राइवेट, कोई स्वयं की गुलामी करता हुआ, हम सब मजदूर हैं जो खुद के पेट के लिए खुद पर आश्रित हैं।
जिनके पेट अनर्गल कमाई से भरे जाते है बस वह लोग ही इस श्रेणी में नहीं हैं।

हम सभी को हम कमजोरों का दिवस मुबारक हो!

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29 APR 2023 AT 0:14

क्यों जमाना सो -सा गया है,
जरूरी अब इक तूफान आना चाहिए..

लिपटें आगोश में लपटें जौहर सी,
रक्त को बेहद आराम आना चाहिए

शांति है मुर्दा सी भीतर न जाने क्यों,
मस्तक को अब श्मशान जाना चाहिए..

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21 APR 2023 AT 8:35

निगाह-ए-इश्क के लिए दो आंखें ही काफी हैं

सवाल मोहब्बत का है तो सारी दुनिया छोटी है।

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21 MAR 2023 AT 23:03

@niranjanonvoyage

कविताऐं महज वे शब्द–शब्दांश नहीं हैं
जो लयबद्ध हैं या गेय हैं।

कविता कसौटी हैं आपके मस्तक की,
कि आप कवि के मस्तक तक पहुंचने के लिए
दो पंक्तियों के बीच के अनेकों रास्तों में से
आप कितने समीप वाले रास्ते से गुजरते हैं।
कविताऐं महज अलंकरण नहीं
एक अनंत जाते रास्ते की मार्गदर्शिकाएं हैं।
Dedicated To All Poets!

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18 MAR 2023 AT 12:22

ये रिमझिम सी बारिश ये छाई हुई घटाएं,
यहां जमीं भी देखो एक सौंधी खुशबू से नम है..

क्या फर्क पड़ता है मौसम के बेमौसम बदलने से,
एक अरसे से देखो यहां पतझड़ जैसा मौसम है..!

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18 MAR 2023 AT 12:21

ये रिमझिम सी बारिश ये छाई हुई घटाएं,
यहां जमीं भी देखो एक सौंधी खुशबू से नम है..

क्या फर्क पड़ता है मौसम के बेमौसम बदलने से,
एक अरसे से देखो यहां पतझड़ जैसा मौसम है..!

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