Rakhi   (Rakhi)
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Joined 13 May 2018


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8 JUL AT 19:49

कैसे हाथ से रेत-सा सब बह जाता है,
बरसों की मेहनत से जो महल बनता है।
पलकों के झपकते ही कैसे ढह जाता है,
जिसे सहेज कर रखा हो — वो सपना,
आँख खुलते ही कैसे फुर्र हो जाता है!

कुछ भी तो थामे नहीं रहता इस समय में,
न ख्वाब, न लोग, न ही अपना बनाया आलम।
बस यादें रह जाती हैं —
उन्हीं दीवारों की, जो कभी छाँव देती थीं,
अब बस सन्नाटा कहता है —
"सब वक़्त का खेल है..."

ये मेला अब चंद दिनों का और,
फिर तिनका-तिनका समेट लेगा कोई और।
हम रह जाएँगे बस एक धुंधली तस्वीर में,
या किसी भूले हुए किस्से की लकीर में।

जो था — वो बीत गया,
जो है — वो रुकता नहीं,
और जो आएगा — उसका कोई वादा नहीं।

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16 JUN AT 8:07

मैं ध्यान श्याम में जलती रही,
वो गोपियों संग रास रचाता रहा।
मैं ज़हर का प्याला पी गई,
वो खड़ा-खड़ा मुस्कुराता रहा।

मैं बाँसुरी की धुन पर बेसुध हो नाचती रही,
वो आँखें मूँद अपनी ही धुन में खोया रहा।
मैं मीरा थी… वो कान्हा था—
अब तुम ही कहो, प्यार किसे किससे था?

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10 JUN AT 8:20

ज़िंदगी के सफ़र में गुज़र रही थी...
क़तरा-क़तरा ज़िंदगी...

कुछ तेरी यादों में,
कुछ मेरे ख़यालों में —
बस बीत रही थी ज़िंदगी...

ख़ामोशी में, बिना किसी शिकवा के...
बस बह रही थी ज़िंदगी...

तेरी बाहों का सहारा खोजती...
चल रही थी साँसों की माला मेरी...

इंतज़ार था तेरी मोहब्बत का...
और उसी इंतज़ार में
बस यूँ ही जल रही थी ज़िंदगी...

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2 JUN AT 7:56

एक अनकही... बिन सुलझी कहानी हूँ मैं...
जिसे कोई न पढ़ सका, वो रवानी हूँ मैं...
लहरों के बीच एक खामोश किनारा हूँ मैं
और हज़ारों सवाल लिए, ख़ुद के लिए ही एक प्रश्नचिन्ह हूँ मैं!!

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2 JUN AT 7:49

जो होना था, वो हो ही गया...
कुछ मेरी थीं गलतियाँ, कुछ तूने भी मुझे ना समझा।
ये जीवन... कहीं अधूरा रह गया,
प्यार था तुझसे, मगर शायद निभा न पाए हम।

ख़्वाहिशें रहीं... तुझसे मोहब्बत की,
चाहत बस चाहत बनकर ही रह गई।
और ज़िन्दगी...
बस यूँ ही, तन्हाई की राहों में चलती चली गई।

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18 MAY AT 10:01

मैंने पूछा..क्या हुआ जो दूर हुए तुम,
क्यों हो ख़फ़ा मुझसे यकायक यूँ?"
वो रुके, देखा मुझे,
फिर बोले इक सांस में थके लफ़्ज़ों से—
"कोई शिकवा नहीं तुमसे,
कोई इल्ज़ाम नहीं,
बस अब ये सफ़र
थोड़ा अलग चाहिए मुझे।"
"तुम्हारा साथ सुकून था,
पर शायद ठहराव भी था,
और मेरे ख्वाब...
वो अब आवाज़ देते हैं मुझे,
कहीं और चलने को,
कहीं और रंग भरने को।"
मैंने निगाहें झुका लीं,
जवाबों की तलाश में
अपने ही भीतर डुबती गयी।
कहीं कुछ टूटा नहीं था,
पर बहुत कुछ बिखर गयी थी।
"क्या मेरा प्यार ही काफ़ी नहीं था?"
मैंने न कहा, न पूछा,
पर आँखों ने सब कह दिया।
वो मुस्कुराए और कँन्खियों से देखा मुझे
"तुम हो अच्छे बहुत अच्छे,
बस, ये वक़्त... हमारा नहीं।"
और फिर वो चल दिए
उन रास्तों पर,
जहाँ मैं साथ नहीं थी,
अब उनकी चितरकारी में मेरा रंग नही...अब में उनके ख्वाबों में नहीं।
शायद ये ख्याल ही बिखेर गया मुझे...
उनको तो नया आसमान मिला मगर मेरी तो जमीन छीन गयी मुझसे...
अब मै वो पहली सी नहीं..
अब वो सूरत नहीं मेरी
हां हूं मै ...मगर शायद कुछ् मर गया है मुझमे।।
तलाशती हूं खुद को... कुछ खो गया है जैसे..
मगर जहाँ रोशन रहे तुम्हारा...हर मोहब्बत मुकम्मल हो ये शायद जरूरी नहीं इस जहां में ।।

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12 MAY AT 7:46

बस थक गयी हूं यार ...इन झंझटों से लड़ते लड़ते.. हर रोज़ खुद को थोड़ा थोड़ा खोते. ...
कहते हैं संभाल लेती हूं सब मै. ..मगर बस अब थक गयी हूं मै उनकी बाते सुनते सुनते...
नहीं अब नहीं बनना जिम्मेदार मुझे मै लावारवाह ही अच्छी हूं..
अब कोई और बने जिम्मेदार और जिने दो बेपरवाह मुझे...
बेपरवाह भी इतनी कि कोई आकर कहे मुझसे की खाना खा लो और मै कहूंगी कि भूक नहीं मुझे और वो जबरदस्ती हाथों से खिला दे मुझे..
कोई तो कहे की लाओ गाडी ठीक करा लाता हूं तुम्हारी... बताओ और क्या बाजार से ला दूँ ...क्या आते हुए तुम्हारे लिए जलेबी ला दूँ..
ये सूट पुराने हुए तुम्हारे चलो तुम्हे थोड़ी शॉपिंग करा लाता हूं..
भूल चुकी हूं अब तो निहारना खुद को आईने में ...सोचती हूं क्या प्यार् के काबिल हूं अब भी मैं. ..क्या पसंद आती हूं किसी को मै ...या शायद झूरियां पसंद नही करता कोई... काश के यौवन चुरा लाऊँ कहीं से मै... काश के खूबसूरत बन जाऊं फिर से और काश के एक बार फिर से जी लूँ में...मगर इस बार जिम्मेदार नहीं बेपरवाह होकर...कुछ अपने लिए थोड़े लम्हे चुरा लाऊँ में!!

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10 MAY AT 20:32

Love is not just a feeling, it's a deep responsibility,
A quiet promise of presence, of strength, of stability.

Love is not just comfort in soft-spoken words,
But walking together through storms, even when it hurts.

Love is not what you say, it’s what you choose to do,
In little acts of care that say, “I’m here for you.”

Love is not a noun to hold, it’s a verb to live each day,
In effort, in patience, in showing up—come what may.

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7 MAY AT 8:13

At times, I ponder what treasures life has given me—besides the weight of a paycheck.”

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6 MAY AT 7:51


जो उड़ने दे मुझे पंख लगाकर...
जीने दे मुझे मुस्कुराकर...
मेरे सपनों में जो जीता हो...
मैं हँसू तो हँस दे वो, और मेरे रोने पर उसकी भी आँखें भर आएं...

मेरे लिए जग से लड़ जाए...
औरों से क्या, ख़ुद से भी भिड़ जाए...
जो साथ मेरे रहना चाहे,
जो मैं न दिखूँ तो चैन न पाए...

जिसे मेरी आज़ादी मंज़ूर हो,
मगर फिर भी मुझे ख़ुद में बाँधना चाहे...
और साया बनूँ मैं उसका, बस यही ख़्वाब हो जिसका...
मुझसे शुरू और मुझ पर ही ख़त्म हो सफ़र जिसका...

काश कि कोई ऐसा मिल जाए!!

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