Rakhi Lukkad   (शून्य_हृदय)
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Joined 30 September 2018


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Joined 30 September 2018
18 JUN AT 12:46

बारिश में भीगना
पसंद नही लेकिन
प्रेम में विरह की तड़प से
जो आँसू बेहते हैं
उन्हें बखूबी छिपा लेती हैं
ये बूँदे...

बारिश में भीगना
पसंद नही लेकिन
प्रेम में दुःख के आवेग में
जो आँसू बेहते हैं
उन्हें संजोय रखती हैं
ये बूँदे...

बारिश में भीगना
पसंद नही लेकिन
प्रेम में मिलन की रिक्तिता में
जो आँसू बेहते हैं
उन्हें संभाल रखती हैं
ये बूँदे...

बारिश में भीगना
पसंद आता है
उन प्रेमियों को
जो अपने अनुरागी के
अलगाव में वैरागी बन
बहा देते अपने भाव को
उन्हें समेट लेती हैं
ये बूँदे...
~राखी लुक्कड़

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4 JUN AT 20:30

प्रेम दीवानगी की हद तक नही
प्रेम जीवन के अंत तक होता है
~राखी लुक्कड़

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20 MAY AT 18:35

हृदय जिसका हुआ आघात
महादेव संभाले उसे हर बार

पीड़ा में हो जिसका मन
महादेव रहें उसके संग

धोखे से गया जो हार
महादेव करते उसे पार
~राखी लुक्कड़

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17 MAY AT 22:21

हमसफर के सफ़र में हम मुंतज़िर हो गये
जो सराय थे वो आज उनके अज़ीज़ हो गये
~राखी लुक्कड़

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11 MAY AT 13:25

पीड़ा में सरलता होती है
तब जब माँ करुणा से कहती
"खाना समय से खाया कर"
मीलों की दुरियाँ हैं
पर "वैभवता" का अभाव नही!
~राखी लुक्कड़

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4 MAY AT 16:43

ये भी कैसा वक़्त है
इंसानियत हुई बेगार है
कोई महफूज़ नही इस शहर में
ये मंज़र ख़ौफ़नाक है

न संभले ख़ुद
न संभाल सके औरों को
कौन कैसे बचाये
ये सोच आदमी परेशान है
ये मंज़र खौफ़नाक है
~राखी लुक्कड़

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27 APR AT 22:05

माना नदी का बहाव तेज़ है
थोड़ा किरदार परबत का भी है

बहती हैं संगीत सुनाती
पत्थरों से राग बनाती

मीलों का सफ़र तय कर
जा मिलती वो सागर में

~राखी लुक्कड़

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27 APR AT 22:01

हो अगर सती सा समर्पण
वैरागी शिव सा प्रेम स्वभाविक है
~राखी लुक्कड़

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27 APR AT 16:01

मेरी रूह की ख़ामोशी ने तुझे सुन लिया
अब तू चुप मैं चुप निगाहों ने सब बयाँ किया

पहले मेरा बैगरतो से राबता रहा
तू राहताँ मिला लाजवाब शख्स मिला

खिल उट्ठे मन तेरी रूहानी लफ़्ज़ो की चासनी से
बढ़ जाये दो, चार साल मेरी ख़तम सी जिंदगी में
~रखी लुक्कड़

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27 APR AT 15:58


हो अगर सीता सी निष्ठा
मर्यादित राम सी सहजता स्वभाविक है
~राखी लुक्कड़

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