Rakhi Lukkad   (Rakhi Lukkad)
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Joined 30 September 2018


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Joined 30 September 2018
26 APR AT 22:43

मौलिक अधिकारों का साथ हमेशा
DPSP की चुनावो में विशेषता
जुमले होते हैं, झूठे आश्वासन होते हैं
'हाँ' लेकिन कभी न ये पूरे होतें हैं

कृषि ऋण माफ़ होगा
आरक्षण भी साथ होगा
धीरे धीरे विकास होगा
'हाँ' कभी न ये पूरा होगा

जाति, धर्म में भेद होगा
संविधान ही खास होगा

माना कि हम आम हैं, पर लोकतंत्र की शान हैं
मतदान एक मान है, आम आदमी की पहचान है
जुमले वादों से अर्थव्यवस्था का नाश है
भविष्य में मानवपूंजी की न आस है
'हाँ'...... फिर भी चुनाव बहुत खास हैं
~राखी लुक्कड़




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26 MAR AT 10:11

हर रंग बेकार है तुम्हारे बिना
माँ
हर दिन अधूरा है तुम्हारे बिना
माँ
हर रिश्ता खोखला है तुम्हारे बिना
माँ
हर त्यौहार बेगाना है तुम्हारे बिना
माँ
मेरा जीवन ही निष्क्रिय है तुम्हारे बिना
माँ...
~राखी लुक्कड़

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11 MAR AT 22:43

वक़्त को नज़रंदाज़ करना चाहता है दिल
तुझसे बार बार मिलना चाहता है ये दिल
~राखी लुक्कड़

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11 MAR AT 22:41

मेरा गुस्से में होना
और उसका सिर झुकना

मेरे लफ़्ज़ों का ऊँचा होना
और उसका चुप हो जाना

बस यहीं मैं हार जाती हूँ
सच कहूँ मैं उसे जीत लेती हूँ

~राखी लुक्कड़

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5 JAN AT 15:25

हार गए सब कुछ अपना
दाऊ लगाया द्रौपदी का
जब आह सुनी स्त्री की
तब कृष्ण ने साथ दिया

भरी सभा मे अश्रु बहे
पांडवो का तिरस्कार हुआ
कोरवो ने जीत पर अपनी
ऐसा कलंकित कार्य किया
~राखी लुक्कड़

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30 NOV 2023 AT 10:25

ज़माने भर की नज़र से दूर तेरा नज़रिया था
शायद इसलिए तू मिरी नज़र में अलग था
~राखी लुक्कड़

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24 NOV 2023 AT 21:21

जब भी मैं ख़ुद से परेशान होती हूँ
माँ के आँचल में वात्सल्य पाती हूँ
~राखी लुक्कड़

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20 NOV 2023 AT 21:08

मैंने माँ पिता की कहानी सुनी
मैंने उनकी कुर्बानी कई बार देखी

त्योहारों पर उनके खाली हाथ देखे
मैंने उनकी आँखों मे कई सपने देखे

शब्दों में उनके, कटु भावावेश देखा
मैंने उनकी दुआ का परचम भी देखा

माँ ‘बेटी’ तो पिता ‘बेटा’ कहते मुझे
‘राखी’ ने अमूल्य रिश्तों में वात्सल्य देखा
~राखी लुक्कड़

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20 JAN 2023 AT 22:29

मैं पवित्र धारा हूँ हर रोज मौज में बहुँगी
तू रुके हुए पानी सा दूषित ना होना

मैं देतान्त में हूँ हर रोज कुछ नया करुँगी
तू ख़ुद की परेशानियों में उलझ न जाना

मैं तरंगों की भाँति खुद को बुलंद करुँगी
तू काफ़िर सा ख़ुद को ना कर लेना

मैं जुगनू सी खुद को रोशन करुँगी
तू पतंग सा धरा पर मत गिरना

मैंने तेरी ख्वाहिश नही तेरी इबादत की
मुझे कभी अपनी जरुरत मत समझना

~राखी लुक्कड़

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3 JAN 2023 AT 15:17

एक चेहरे पर अनेक चेहरे देखे हैं
ये बनावटी लोग इतने मशहूर कैसे हैं

चालाकियों ने हर दिल को लूटा है
सादगी ने सबको मुहब्बत से संवारा है

कल की फ़िक्र होती है जालसाज़ को
ख़ुश ज़िन्दगी के मेज़बान हैं असली चेहरे

~राखी लुक्कड़

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