इतनी बंदिश नहीं अच्छी कि परिंदा छोड़ के उड़ जाए
हद कैद की नहीं अच्छी कि पिंजरा तोड़ के उड़ जाए
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बस इतना ही तो है ज़िंदगी का सफर...राखी ✍
एक एक करके उड़ गए परिंदे सारे घोंसला इंतजार में है
मेहमान घरवाले ही हो गए ,दर ओ दीवार भी इंतज़ार में हैं
एक सोच में डूबा हुआ अजब सन्नाटा पसरा रहता हैं हर तरफ वहां पर
बीतते गए अरसे कई किसी को आए ,रौनकें इंतजार में हैं
देख लो भटक कर तुम भी उस शहर की झूठी जगमगाहट को आंख भर के
तुम कभी तो लौटोगे लेकर नए तजुर्बे ,ये यकीं इंतज़ार में हैं
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हर उस बुराई को
जो आपको सुलगाती है
आपके अंतर्मन को जलाती है
आपके व्यक्तित्व को झुलसाती है
Rakhee ki kalam se
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अना है इज्जत है सम्मान है
विश्वाश है भरोसा है स्वाभिमान है
इलाज है हल है समाधान है
गर्भ है सांस है जन्म का प्रमाण है
जज़्वा है हिम्मत है शक्तिवान है
अस्तित्व है सामर्थ्य है सकल जहन है
रौनक है शोभा है शान है
करुणा है ममता है दयावान है
सोच है समझ है भान है
जागृति है चेतना है आह्वान है
समर्पण है त्याग है महान है
रचना है सृजन है शांति का विधान है
तब तक जब तक सामने वाला
इंसान वास्तव में इंसान है
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कर पाओगे
ये शान ओ शौकत ,सत्ता,ये ज़मीने
क्या साथ अपने लेकर जा पाओगे
युद्ध लाता है सिर्फ तबाही हर तरफ
इतिहास उठा के देखोगे तो समझ जाओगे
लगा रहे हो ये जो नफरतों की आग
एक दिन तुम खुद भी इसी में झुलस जाओगे-
मैं रुका भी नहीं
तुमने पुकारा भी नहीं
वक्त रुक ना सका
मैने गुज़ारा भी नहीं
जीत हो ना सकी
मैं हारा भी नहीं
मैं किसी का न हुआ
और तुम्हारा भी नहीं
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जहाँ सुकून मौजूद होता है
जहां संतुष्टि का वजूद होता है
जहां मंज़िल ए मकसूद होता है-