■महान यूनानी दार्शनिक "सुकरात" का कथन■
"By all means, marry. If you get a good wife, you'll become happy; if you get a bad one, you'll become a philosopher."
"कुछ भी हो जाए शादी करो, अगर तुम्हें अच्छी पत्नी मिलती है, तुम खुश हो जाओगे, अगर तुम्हें खराब पत्नी मिलती है, तुम एक दार्शनिक बन जाओगे."
"Socrates सुकरात"-
# कोई हमारा कोट लाइक करता है तो हम उसका
कोट ... read more
कर्मठ,हँसमुख,गुणी,चतुर,चौकस,सर्वधर्म समभाव से निहित हैं
Astiiii....💖
अमृत सुधा से बी.जी. आते तभी चलती कलमकारों की कलम-
■इश्क़ कमज़र्फ़■
तोड़ कर शाख से पत्ते को ज़ुदा किया उसने
बर्बादी का जश्न कुछ इस तरह मनाया उसने-
■"भ्रष्ट नेता" क्या करे जनता■
घोर समर्थक था नेता का, दल भी साथ लिए फ़िरता था
निकल पड़ा जो घर नेता के, दूर से देखा दल का झंडा
पैरों तले ज़मीं खिसकी है, आँखों में है घोर अंधेरा
दुश्मन मान लड़ा करता था, कल तक जिन लोगों से वो
खड़े सामने उनको देखा, जय जयकार करें नेता की
जकड़ लिया पैरों ने उसके, कैसे गले लगाए उनको
देखा लहराते उस झंडे को, जला दिया था कल रैली में
ख़ामोशी का आलम ऐसा, हर्फ़ ना निकले मुंह से उसके
दुश्मन ज़ग को बना लिया था, नेताजी की वफ़ा में उसने
दल भी गायब झंडा गायब नेता खड़ा - खड़ा इतराए
सूनापन आँखों में उसकी, गहरी सोच बिठाए मन में
जड़ बनकर वो खड़ा हुआ है, पथराई आँखों से देखे
तन भी खाली मन भी खाली, रूह भी उसकी खाली हो गई
लौट चला अब घर को अपने, केवल 'अपने' घर को लौटा-
■ज़ुल्फ़ क़हर■
ज़ुल्फ़ जो झटकीं क़हर ने तो कुछ बूंदें रुख़सार पर आ गिरीं
सीखा कहाँ से ये नायाब हुनर आशिकों के क़त्ल-ए-आम का-
■ विनम्र आग्रह ■
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पर लाइक्स एवं कमेंट्स देने आते हैं.. हमारा विनम्र
आग्रह है कमेंट दें तो रिप्लाई को अवश्य लाइक करें
ये जिम्मेदारी वाला कार्य है.. बहुत से लोग ये गलती
करते हैं....... तभी हम आपके प्रोफाइल पर आकर
आपकी रचना को पढ़ने,लाइक्स एवं कमेंट्स देने में
सहज महसूस करेंगे!
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कुछ लोग इस मामले में बेहद संजीदा हैं उनके हम
आभारी हैं!😊
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यहाँ हम कुछ विशिष्ट
लोगों की ( जिनसे हमारी विशेष आत्मीयता है.. )
बात नहीं कर रहे हैं वो कमेंट नहीं भी देंगे रिप्लाई
को लाइक नहीं भी करेंगे तब भी हम उनके प्रोफाइल
पर जाकर उनकी रचनाएं पढ़ेंगे लाइक करेंगे कमैंट्स
देंगे.. खुद को गौरवान्वित महसूस करेंगे😊
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■अनमोल रिश्ते■
देखा भी नहीं "उसको", एक हद से गुज़र जाने के बाद
ये नाराज़गी नहीं थी हमारी, रिश्ते का पूर्ण इंतकाल था-
■मुफ़लिसी और तन्हाई■
मुफ़लिसी में गुजरा जीवन वो डूबा तन्हाई में इतना
चला गया वो दूर जहाँ से उकेर शिला पर दर्द अपना-
■शाब्दिक अपराध■
अंदाज़-ए-बयां कुछ ऐसा था, उसके 'उम्दा' अल्फ़ाज़ो का
पिघले शीशे सा उतर गया था, हर लफ़्ज़ हमारे कानों में-
■सौंदर्य भाव■
वो एक बूँद पानी की, तेरी लट से निकलकर, माथे को चूमकर, होठों से फिसल कर, आँचल पर ठहरती होगी
ऐ गुलबदन, ऐ रूपसी, नायिका तू इंद्र सी, खिले बागवान में महकते पुष्प सी, तब तू और भी निखरती होगी-